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________________ विषयसूची १२३ खुलासा २०९ २१० यतिवृषभ प्राचार्य अपने द्वारा कहे गये पेज्ज शब्दका निक्षेप २५८ अर्थाधिकारोंके अनुसार चूणिसूत्र रचेंगे, नैगम, संग्रह और व्यवहार इन तीन नयोंके इसका उल्लेख चारों निक्षेप विषय हैं, इसका खुलासा । २५९ प्रकारान्तरसे पन्द्रह अर्थाधिकार के नाम । १९२ ऋजुसूत्र स्थापनाको छोड़ कर शेष तीन पेज्जदोसपाहुड और कसायपाहुड ये दो नाम निक्षेपों को विषय करता है इसका खुलासा २६२ किस अभिप्रायसे कहे है इसका उल्लेख १९७ शब्दनय नाम और भाव निक्षेपको विषय नयका स्वरूप १९९ करता है इसका खुलासा, तथा प्रसंगसे नयज्ञान प्रमाणज्ञान नहीं है, इसका समर्थन वाच्यवाचक भावका विचार २६५ सकलादेशका विवेचन नाम पेज्ज आदि चारों निक्षेपोंका स्वरूप २६९ विकलादेशका विवेचन नोकर्मतव्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यपेज्जका नयज्ञान प्रमाणज्ञान नहीं है इसका पुनः विशेष वर्णन २७१ खुलासा २०७ उपयक्त कथन नैगमनयकी अपेक्षा है इसका सर्वथा विधिज्ञान और प्रतिषेधज्ञानका निषेध २०८ नय अनेकान्तरूप नहीं है. इसका समर्थन संग्रहादि तीन नयोंकी अपेक्षा सभी द्रव्य वाक्यनयका स्वरूप - पेज्ज है इसका कथन ર૭૪ नयकी सार्थकता २११ १० भाव पेज्जका कथन स्थगित करने में हेत २७७ नयके भेद दोषका निक्षेप तथा नययोजना द्रव्याथिकनयका स्वरूप और विषय | नोकर्म तयतिरिक्त नोआगम द्रव्य दोषका पर्यायाथिकनयका स्वरूप और विषय कथन २८० द्रव्याथिक और पर्यायाथिक नयके विषय- | भावदोषके कथनके स्थगित करने में हेत २८२ __ में उपयोगी श्लोक कषायका निक्षेप तथा नययोजना २८३ द्रव्याथिकनयके भेद और उनका खुलासा २१९ | प्रत्ययके भेद और उनका स्वरूप २८४ पर्यायाथिकनयके भेद और उनका खुलासा २२२ नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोग्रागम द्रव्य कषाय व्यञ्जनयके भेद और उनका खुलासा २३५ का कथन २८५ प्रसंगसे अर्थ और शब्दमे वाच्यवाचक क्रोधप्रत्ययकषायका स्वरूप ૨૮૭ भावका समर्थन | प्रत्ययकषाय और समुत्पत्तिककषायमें भेद २८९ नैगमनयके भेद और उनका खुलासा २४४ मानप्रत्ययकषाय आदिका विचार सात नयोंसे अधिक नयों के स्वीकार करने उपर्युक्त कथन नंगमादि तीन नयों की अपेक्षा कोई दोष नहीं, इसका खुलासा २४५ हे इसका खुलासा सर्वथा एकान्तरूप ये सब नय मिथ्या है। ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा क्रोधप्रत्ययकषायका क्योकि वस्तु सर्वथा नित्यादिरूप नहीं विचार पाई जाती इसका खुलासा किस समय कर्मस्कन्ध बन्ध, उदय और सत्व वस्तु जात्यन्तररूप है, इसमें प्रमाण २५२ संज्ञा को प्राप्त होते हैं इसका खुलासा २९१ ये नय एकान्तसे मिथ्यादृष्टि ही नहीं है २५७ ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा मानादि प्रत्यय कषायों कसायपाहड संज्ञा नयनिष्पन्न क्यों है इसमें की सूचना क्रोध समुत्पत्तिककषायका विचार और पेज्जदोसपाहुडसंज्ञा नयनिष्पन्न होते हए भी __ आठ भंग २९३ अभिव्याहरणविशेषकी अपेक्षा उसे पृथक् आठ भंगोंका प्ररूपण कहा है, इसका उल्लेख २५८ | मानादि समुत्पत्तिककषायोंका विचार ३०० 29. २३८ २४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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