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________________ ६२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१,२,७,४ गा०. संघडणाणं संठाणभंगो । सव्वतिव्वाणुभागं 'पसत्थ [ वण्णचउक्कमप्पसत्थवण्ण ] चउक्कमणंतगुणहीणं । 'जहा गई तहाणुपुब्बी । एत्तो सवजुगलाणं सव्वतिव्वाणुभागाणि पसत्थाणि । अप्पसत्थाणि पडिवक्खाणि अणंतगुणहीणाणि । सव्वातिव्वाणुभागं उच्चागोदं । णीचागोदमणंतगुणहीणं । सव्वतिव्वाणुभागं विरियंतराइयं । हेहा कमेण दाणंतराइया अणंतगुणहीणा । एवं सत्थाणप्पाबहुगं समत्तं । (संज-मण-दाणमोही लाभं सुदचक्खु-भोग चक्टुं च । आभिणिबोहिय परिभोग विरिय णव णोकसायाइं ॥४॥ 'संज'त्ति उत्ते चत्तारि वि संजलणाणि घेत्तव्वाणि । 'मण दाणं'इदि वुत्ते मणपज्जवणाणावरणीयस्स दाणंतराइयस्स गहणं । 'ओहिति वुत्ते ओहिणाणावरणीयं घेत्तव्वं । 'लामणिदेसो लाभंतराइयगहणहो । 'सुद'णिद्देसो सुदणाणावरणीयपण्णवणट्ठो । संहननोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा संस्थानोंके समान है। प्रशस्त वर्णचतुष्क सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है। उससे अप्रशस्त वर्णचतुष्क अनन्तगुणा हीन है। आनुपूर्वीकी प्ररूपणा गति नामकर्मके समान है। ____आगे त्रस-स्थावरादि सब युगलोंमें प्रशस्त प्रकृतियाँ सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त हैं। उनकी प्रतिपक्षभूत अप्रशस्त प्रकृतियाँ अनन्तगुणी हीन हैं।। उच्चगोत्र सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है । उससे नीचगोत्र अनन्तगुणा हीन है। वीर्यान्तराय सबसे तीव्र अनुभागसे युक्त है। उसके नीचे क्रमशः दानान्तरायादिक अनन्तगुणे हीन हैं। इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। संज्वलनचतुष्क, मनःपर्ययज्ञानावरण, दानान्तराय, अवधिज्ञानावरण, लाभान्तराय, श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण, भोगान्तराय, चक्षुदर्शनावरण, आमिनिबोधिकज्ञानावरण, परिभोगान्तराय, वीर्यान्तराय और नौ नोकषाय ये प्रकृतियाँ उत्तरोत्तर अनन्तगुणी हैं ॥ ४ ॥ __ 'संज' ऐसा कहनेपर चारों ही संज्वलन कषायोंका ग्रहण करना चाहिये । 'मण-दाणं' यह कहनेपर मनःपर्ययज्ञानावरणीय और दानान्तरायका ग्रहण करना चाहिये । 'ओहि' ऐसा कहनेपर अवधिज्ञानावरणीयका ग्रहण करना चाहिये । 'लाभ' पदका निर्देश लाभान्तरायका ग्रहण करनेके लिये किया है। श्रुतज्ञानावरणीयका ज्ञान करानेके लिये 'सुद' पदका निर्देश किया है। अचक्षु १ अप्रतौ 'त्रुटितोऽत्र पाठः, मप्रतौ' सब्बतिव्वाणुभागं पसस्थवण्णं चउक्कमणंतगु० इति पाठः। २ अप्रतौ 'महा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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