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४, २, ७, ७२.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं
[४७ पोग्गलविवागित्तणेण बंधसामित्तेण कम्मइयसरीरेण तेजइयसरीरं समाणं वट्टदे, तदो अणंतगुणहीणत्तं ण घडदि त्ति ? ण, कज्जमहत्तादो कम्मइयसरीराणुभागस्स महत्तसिद्धीदो, तेजइयसरीरकम्मादो तेजइयसरीरस्सेव णिप्फत्ती, कम्मइयसरीरं पुण गंधिल्लपेलियावेंटो व्व सबकम्माणमासयभावफलं । तदो तेजइ यसरीरेण कीरमाणकज्जादो कम्मइयसरीरेण कीरमाणकजमइमहल्लं त्ति तदणुभागस्स अणंतगुणत्तमवगम्मदे।
आहारसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७१ ॥
कुदो एदं णव्वदे ? उव्वेल्लिज्जमाणत्तादो। ण च तिव्वाणुभागो उव्वेल्लिय . णिस्संतो कार्दु सक्किजदे। आहारसरीरं पुण उव्वेल्लिय णिस्संत कीरमाणमुवलब्भदे । तदो तेजइयसरीराणुभागादो आहारसरीराणुभागो अणंत गुणहीणो त्ति सिद्धं ।
वेउव्वियसरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७२ ॥ कुदो ? पयडिविसेसेण । को पयडिविसेसो ? आहारसरीरं पेक्खिदूण सत्थभावण
शंका-चूँकि तैजस शरीर पुद्गलविपाकी होनेकी अपेक्षा व बन्धस्वामित्वकी अपेक्षा कार्मण शरीरके समान है, अतएव उसमें कार्मण शरीरकी अपेक्षा अनन्तगुणी हीनता घटित नहीं होती ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, कार्यके महत्त्वसे कार्मण शरीरके अनुभागकी भी महानता सिद्ध होती है। तैजस शरीर नामकर्मसे केवल तैजस शरीरकी उत्पत्ति होती है, किन्तु कार्मण शरीर गन्धवाले पेलिया वृत्तके समान सब कोंके आसवका कारण है इसलिये तैजस शरीरके द्वारा किये जानेवाले कार्यकी अपेक्षा कार्मण शरीरके द्वारा किया जानेवाला कार्य अतिशय महान् है, अतएव उसका अनुभाग अनन्तगुणा है यह निश्चय होता है।
उससे आहारक शरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७१ ॥ शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-क्योंकि, वह उद्वेलनाको प्राप्त होनेवाली प्रकृति है। तीव्र अनुभागकी उद्वेलना करके उसे निःसत्त्व करना तो शक्य नहीं है। परन्तु आहारक शरीरकी उद्वेलना करके उसे निःसत्त्व करते हुए देखा जाता है। इस कारण तैजस शरीरके अनुभागकी अपेक्षा आहारक शरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है, यह सिद्ध होता है।
उससे वैक्रियिक शरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७२ ॥ इसका कारण प्रकृतिकी विशेषता है। शंका-वह प्रकृतिकी विशेषता क्या है ?
समाधान-आहारक शरीरमें जितनी प्रशस्तता है उसकी अपेक्षा इसमें वह कम है, यही प्रकृति विशेषता है।
१ प्रतिषु 'अणंतगुणो त्ति' इति पाठः ।
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