SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ७, २ गा.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं [४३ चुण्णिसुत्तादो । 'आभिणि' त्ति वुत्ते आभिणियोहियणाणावरणीयस्स गहणं । 'परिभोगे' त्ति वुत्ते परिभोगंतराइयस्स गहणं । एदाणि दो वि अण्णोण्णं तुल्लाणि होदण पुचिल्लाणुभागादो अणंतगुणहीणाणि । कधं तुल्लत्तं णव्वदे ? परमगुरूवएसादो । 'चक्खू' इदि वुत्ते चक्खुदंसणावरणीयस्स गहणं । 'तिण्णि'त्ति वुत्ते सुदणाणावरणीय-अचक्खुदंसणावरणीयभोगंतराइयाणं अण्णोण्णं पेक्खिदूण अणुभागेण समाणाणं गहणं। कधमेदेसिं तुल्लत्तं णव्वदे ? ण, पाइरियोवदेसादो। तेण एत्थ अणंतगुणहीणाहियारो पादेकं ण संवज्झदे किं तु समुदायम्मि । 'तिय'इदि वुत्ते ओहिणाणावरणीय-ओहिदंसणावरणीय-लाहंतराइयाणं अणुभागं पेक्खिदूण अण्णोण्णेण समाणाणं गहणं । कधं समाणत्तं णव्यदेउवरि भण्णमाणचुण्णिसुत्तादो मणपजवणाणावरणीय-थीणगिद्धि-दाणंतराइयाणं अणुभागेण अण्णोण्णं तुल्लाणं 'तिणि तिय' णिदेसेणेव गहणं, अन्यथा त्रि-त्रिकत्वानुपपत्तेः। एत्थ वि अणंतगुणहीणाहियारो समुदाए अणुवट्टावेदव्वो। 'पंच णोकसाया' इदि वुत्ते पंचण्णं णोक समाधान--आगे कहे जानेवाले चूर्णिसूत्रसे जाना जाता है। 'आभिणि' ऐसा कहनेपर आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका ग्रहण होता है। 'परिभोग' कहनेपर परिभोगान्तरायका ग्रहण होता है। ये दोनों ही परस्पर समान होकर पूर्वके अनुभागसे अनन्तगुणे हीन हैं। शंका-इनकी समानताका परिज्ञान किस प्रमाणसे होता है ? समाधान-उसका परिज्ञान परमगुरुके उपदेशसे होता है। 'चक्खू' ऐसा कहनेपर चक्षुदर्शनावरणीयका ग्रहण होता है। 'तिण्णि' पदके निर्देशसे एक दूसरेको देखते हुए अनुभागकी अपेक्षा समान श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायका ग्रहण होता है। शंका-इनकी समानता किस प्रमाणसे जानी जाती है ? समाधान नहीं, क्योंकि वह आचार्यों के उपदेशसे जानी जाती है। इस कारण इनमेंसे प्रत्येकमें अनन्तगुणहीन पदके अधिकारका सम्बन्ध नहीं है, किन्तु समुदायमें है। 'तिय' ऐसा कहनेपर अनुभागकी अपेक्षा परस्पर समान अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तरायका ग्रहण होता है। शंका-यह समानता किस प्रमाणसे जानी जाती है ? समाधान-वह आगे कहे जानेवाले चूर्णिसूत्रसे जानी जाती है। परस्पर अनुभागकी अपेक्षा समानताको प्राप्त हुई मनः पर्ययज्ञानावरणीय, स्त्यानगृद्धि और दानान्तराय इन तीन प्रकृतियोंका भी ग्रहण 'तिण्णतिय' पदके निर्देशसे ही होता है, क्योंकि, इसके बिना तीन त्रिक घटित नहीं होते। यहाँपर भी अनन्तगुणहीन पदके अधिकारकी अनुवृत्ति समुदायमें ही करानी चाहिये । 'पंच णोकसाया' ऐसा कहनेपर पाँच नोकषायोंका ग्रहण होता है। १ प्रतिषु पंचण्णं कसायाणं णोकसा-इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy