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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, ५२.
कुदो ? सुहपडित्तादो । असुहपयडिअणुभागादो सुहपयडीणमणुभागो किमडमतगुणो ण, साभावियादो । न हि स्वभावाः परपर्यनुयोगाः । वेदणीवेयणा भावदो उकस्सिया अनंतगुणा ॥ ५२ ॥ जसकित्ति उच्चागोदेहिंतो सादावेदणीयस्स पसत्थतमत्तादो । _एवमुक्कस्साणुभागप्पा बहुगं समत्तं ।
जहण्णु कस्सपदेण सव्वत्थोवा मोहणीयवेयणा भावदो जह णिया ॥ ५३ ॥
सुगम ।
अंतराइयवेयणा भावदो जहण्णिया अनंतगुणा ॥ ५४ ॥
सुगमं ।
णाणावरणीय - दंसणावरणीयवेयणा भावदो जहण्णियाओ दो वि तुल्लाओ अनंतगुणाओ ॥ ५५ ॥
सुगमं ।
आउअवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ५६ ॥
सुगमं ।
क्योंकि, ये दोनों शुभ प्रकृति हैं ।
शंका-अशुभ प्रकृतियोंके अनुभागसे शुभ प्रकृतियोंका अनुभाग अनन्तगुणा क्यों है ? समाधान— नहीं, क्योंकि, वैसा स्वभाव है, और स्वभाव प्रश्नके विषय नहीं हुआ करते । उनसे भावकी अपेक्षा वेदनीयकी उत्कृष्ट वेदना अनन्तगुणी है ॥ ५२ ॥ कारण कि यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी अपेक्षा सातावेदनीय अतिशय प्रशस्त है ।
इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । जघन्य - उत्कृष्टपदसे भावकी अपेक्षा मोहनीयकी जघन्य वेदना सबसे स्तोक है ।। ५३ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
उससे भावकी अपेक्षा अन्तरायकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ५४ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
उससे भावकी अपेक्षा ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीयकी जघन्य वेदनायें दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणी हैं ॥ ५५ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उनसे भावकी अपेक्षा आयुकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ।। ५६ ।।
यह सूत्र सुगम है ।
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