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२६] छक्खंडागमे वेयणाखंटं
[४, २,७, २७. तवदिरित्तमजहण्णा ॥ २७ ॥ सुगम।
सामित्तेण जहण्णपदे मोहणीयवेयणा भावदो जहणिया कस्स ? ॥२८॥
सुगमं ।
अण्णदरस्स खवगस्स चरिमसमयसकसाइस्स तस्स मोहणीयवेयणा भावदो जहण्णा ॥ २६ ॥
अंतोमु हुत्तमणुसमयओवट्टणाघादेण धादिदसेसअणुभागगहणé 'चरिमसमयकसाइस्स' इत्ति णिद्दि । सेसं सुगम ।
तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥ ३०॥ सुगमं ।
सामित्तेण जहण्णपदे आउअवेयणा भावदो जहणिया कस्स ? ॥३१॥ उनके कदाचित् असातावेदनीयका उदय रहनेपर भी क्षुधा-तृषाजन्य बाधा नहीं होती। यही कारण है कि केवली जिनके क्षुधादिजन्य बाधाका अभाव कहा गया है। शेष स्पष्टीकरण मूलमें किया ही है।
इससे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ २७॥ . यह सूत्र सुगम है।
स्वामित्वसे जघन्य पदमें मोहनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ॥ २८ ॥
यह सूत्र सुगम है।
अन्तिम समयवर्ती सकषाय अन्यतर क्षपकके मोहनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ २९ ॥
अन्तर्मुहूर्त कालतक प्रति समय अपवर्तनाघातके द्वारा घात करनेसे शेष रहे अनुभागका ग्रहण करनेके लिये 'अन्तिम समयवर्ती सकषायके' इस पदका निर्देश किया है। शेष कथन सुगम है। __ इससे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ ३० ॥
यह सूत्र सुगम है। ___ स्वामित्वसे जघन्य पदमें आयुकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ ३१ ॥
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