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________________ ४, २, १५, ४ ] वेणभागाभाग विहाणाणियोगद्दारं [ ५०३ नव्वदे ? णाणावरणीय दंसणावरणीयपयडीओ सव्वपयडीणं दुभागो देसूणो ति सुणावत्तदो । संपहि णाणावरणीय सव्वपयडीहि अट्ठकम्मपयडिपुंजे भागे हिदे सादिरेयदोरुवाणि लभति । सादिरेगपमाणमेगरूवस्स असंखेज्जदिभागो । तं जहा - णाणावरणीयपडी अट्ठकम्माणं सव्वपयडिपुंजादो अवणिदासु एगा अवहारसलागा लब्भदि [१] । संपहि अवसादो' दंसणावरणीयादिसत्त कम्म पयडीओ अस्थि । पुणो तत्थ असादावेदणीयादिसेसपयडीसु पंचरूवूणमणपज्जवणाणावरणीयपयडीओ घेत्तूण दंसणावरणीयपयडीसु पक्खिते पक्खित्तपयडीहि सह दंसणावरणीयपयडीओ णाणावरणीय पयडी हि सरिसा होंति । अवणिदे विदिया अवहारकालसलागा लब्भदि [२] । पुणो गहिदावसेसासु पयडीसु णाणावरणीयपय डिपमाणेण कीरमाणासु एगरूवस्स असंखेज्जदिभागो अवहारो उवलब्भदे, णाणावरणीयस्स पयडीसु जदि एगा अवहारकालसलागा लब्भदि तो गहिद से सपयडी किं लभामो त्ति पमाणेण फल गुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए एगरुवस्स असंखेज्जदिभागुवलंभादो । एदेहि सादिरेगदोरूवेहि सव्वपयडीसु ओवट्टिदासु णाणावर मात्र होकर मन:पर्ययज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंसे असंख्यातगुणी हैं । शंका- वे उनसे असंख्यातगुणी हैं, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान - 'ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीयकी प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके द्वितीय भागसे कुछ कम है' इस सूत्र की अन्यथानुपपत्तिसे वह जाना जाता है । अब ज्ञानावरणीयकी सब प्रकृतियोंका आठ कर्मों के प्रकृतिपुंज में भाग देनेपर साधिक दो रूप पाये जाते हैं । साधिकताका प्रमाण एक अङ्क का असंख्यातवाँ भाग है । वह इस प्रकारसे - आठ कर्मोंकी सब प्रकृतियों के समूहमेंसे ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंको कम कर देनेपर एक अवहारशलाका पायी जाती है (१) । अवशेष रूपसे दर्शनावरणीय आदि शेष कर्मोंकी प्रकृतियाँ रहती हैं । फिर उन आसातावेदनीय आदि शेष कर्मोंकी प्रकृतियों में से पाँच अङ्कोंसे कम मन:पर्ययज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंको ग्रहणकर दर्शनावरणीयकी प्रकृतियों में मिला देनेपर मिलायी हुई प्रकृतियोंके साथ दर्शनावरणीयकी प्रकृतियाँ ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंके सदृश होती हैं । [ इन दर्शनावरणीयकी प्रकृतियोंके उक्त कर्म प्रकृतियोंमेंसे ] कम कर देनेपर द्वितीय अवहारशलाका पायी जाती है ( २ ) । फिर ग्रहणकी गई प्रकृतियोंसे अवशिष्ट रहीं प्रकृतियोंको ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंके प्रमाणसे करनेपर एक अंकका असंख्यातवाँ भाग मात्र अवहार पाया जाता है, क्योंकि, ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियोंमें यदि एक अवहारशलाका पायी जाती है तो ग्रहण की गईं प्रकृतियोंसे शेष रही प्रकृतियों में कितनी अवहारशलका पायी जायगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक अङ्कका असंख्यातवाँ भाग पाया जाता है। इन साधिक दो अङ्कोंसे सब प्रकृतियोंको अपवर्तित करनेपर ज्ञानावरणीयकी १ ताप्रतौ ' असे सादो (श्रो ) ' इति पाठः । २ अ ा-काप्रतिषु 'गहिदावसेसाम्रो' ताप्रतौ 'गहिदावसेसानो (सु)' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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