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________________ ४, २, १३, ३०८.] वेयणसण्णियासविहाणाणियोगदारं [४७३ तस्स मोहणीयवेयणा भावदो जहणिया णत्थि ॥ ३०४॥ दिस्से तत्थ 'पदेससत्ताभावादा । एवं दंसणावरणीय-अंतराइयाणं ॥३०५ ॥ . जहा णाणावरणीयसण्णियासो कदो तह। एदासि पि पयडीणं कायव्यो । जस्स वेयणीयवेयणा भावदो जहण्णा तस्स णाणावरणीय-दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयवेयणा भावदो जहणिया णस्थि ॥३०६॥ कुदो ? अजोगिचरिमसमए एदेसिं 'पदेससत्ताभावादो । तस्स आउअ-णामा-गोदवेयणा भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ ३०७॥ सुगम । णियमा अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया ॥ ३०८॥ कुदो ? जसकित्ति-उच्चागोदाणं चरिमसमयसुहुमसांपराइएण बद्ध उक्कस्साणुभागस्स सग-सगजहण्णाणुमागादो अणंतगुणस्स अजोगिचरिमसमए उवलंभादो, तिरिक्खअपज्जत्तसंजुत्ताउअभावादो वि मणुसाउअमावस्स पसत्थत्तणेण घादाभावेण च अणंतगुणसुवलंभादो। उसके मोहनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य नहीं होती ।। ३०४॥ कारण कि वहाँ उसके प्रदेशोंके सत्त्वका अभाव है। इसी प्रकारसे दर्शनावरणीय और अन्तरायकी अपेक्षा प्ररूपणा करनी चाहिये ॥३०॥ जिस प्रकारसे ज्ञानावरणीय कर्मका संनिकर्ष किया गया है उसी प्रकारसे इन दो प्रकृतियोंके भी संनिकर्षकी प्ररूपणा करनी चाहिये। जिस जीवके वेदनीय कर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकी वेदना भाव की अपेक्षा जघन्य नहीं होती ॥३०६॥ कारण कि अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें इन कर्मों के प्रदेशोंके सत्त्वका अभाव है। उसके आयु, नाम और गोत्रकी वेदना भावकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥३०७॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियम से अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ ३०८ ॥ कारण यह कि यश कीर्ति और उच्चगोत्रका अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके द्वारा बाँधा गया उत्कृष्ट अनुभाग अयोगकेवलीके अन्तिम समयमें अपने अपने जघन्य अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणा पाया जाता है, तथा अपर्याप्त सहित तिर्यञ्च आयुके अनुभागकी अपेक्षा प्रशस्त व घातसे सहित होने के कारण मनुष्यायुका भी अनुभाग अनन्तगुणा पाया जाता है । १ प्रतिषु 'पदेसत्ता भावादो' इति पाठः । २ अ-श्रा-काप्रतिषु ‘पदेसत्ताभावादो' इति पाठः। छ. १२-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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