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________________ ४, २, १३, १७१ ] वेयणसणियासविहाणाणियोगदारं [ ४३३ करेदि तो भावो जहण्णो होद्ण खेत्तवेयणा अजहण्णा होदि । होता वि चउट्ठाणपदिदा, खेत्तम्हि असंखेज्जभागवड्डि-संखेज्ज भागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डि-असंखेज्जगुणबड्डीओ मोत्तूण अण्णव डीणमभावादो । तस कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १६७ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणन्भहिया ॥ १६८॥ कुदो ? जहण्णकालेण जहण्णभावकाले भागे हिदे अंतोमुहुत्तमे त्तगुणगारुवलंभादो । जस्स णामवेयणा दव्वदो जहण्णा तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १६६ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणन्भहिया ॥ १७० ॥ कुदो ? णामजदृण्णखेत्तेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमे तेण अजोगिचरिमसमयजहण्णदव्वज हण्णखेत्ते संखेज्जंगुलमेते भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागवलंभादो । तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १७१ ॥ सुगमं । क्षेत्रको नहीं करता है तो उसके भावके जघन्य होते हुए भी क्षेत्र वेदना अजघन्य होती है । अजघन्य होकर भी वह चार स्थानों में पतित है, क्योंकि क्षेत्रमें असंख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धिको छोड़कर अन्य वृद्धियोंका अभाव है । उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १६७ ॥ यह सूत्र सुगम है । वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ।। १६८ ।। कारण कि जघन्य कालका जघन्य भाव सम्बन्धी कालमें भाग देनेपर अन्तर्मुहूर्त मात्र गुणकार पाया जाता है । जिस जीवके नामकर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १६९ ॥ यह सूत्र सुगम है । वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १७० ॥ कारण कि नामकर्म सम्बन्धी अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र जघन्य क्षेत्रका अयोग केवली के अन्तिम समय सम्बन्धी जघन्य द्रव्यके संख्यात अंगुल प्रमाण जघन्य क्षेत्र में भाग देनेपर पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग पाया जाता है । उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १७१ ॥ यह सूत्र सुगम है । छ. १२-५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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