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________________ ४३२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १३, १६३. जस्स आउअवेयणा भावदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १६३ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणब्भहिया ॥ १६४ ॥ कुदो ? जहण्णदव्वेण एगसमयपबद्धस्स असंखेज्जदिभागेण जहण्णभावआउअदव्वे भागे हिदे असंखेज्जरूवोवलंभादो । कुदो असंखेज्जरूवोवलद्धी ? जहण्णभावाउअदवम्मि बंधगद्धासंखेज्जदिमागमेत्तसमयपवद्धाणमुवलंभादो। तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १६५ ॥ सुगमं । जहण्णा वा अजहपणा वा। जहण्णादो अजहण्णा चउठाणपदिदा ॥ १६६॥ जदि मज्झिमपरिणामेहि तिरिक्खाउअं बंधिय जहण्णक्खेत्तं करेदि तो भावेण सह खत्तं पि जहण्णं चेव । अध' मज्झिमपरिणामेहि आउअंबंधिय जहण्णक्खेत्तं ण जिस जीवके आयुकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१६३ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १६४ ॥ कारण कि एक समयप्रबद्धके असंख्यातवें भाग मात्र जघन्य द्रव्यका जघन्य भाव युक्त आयुके द्रव्यमें भाग देनेपर असंख्यात रूप पाये जाते हैं । शंका-असंख्यात रूप कैसे प्राप्त होते हैं। समाधान-क्योंकि जघन्य भाव युक्त आयुके द्रव्यमें बन्धक कालके असंख्यातवें भाग मात्र समयप्रबद्ध पाये जाते हैं, अतएव असंख्यात रूप पाये जाते हैं। उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १६५ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य चार स्थानों में पतित है॥१६६ ॥ यदि मध्यम परिणामोंके द्वारा तियच आयुको बाँधकर जघन्य क्षेत्रको करता है तो भावके साथ क्षेत्र भी जघन्य ही होता है। परन्तु यदि मध्यम परिणामोंके द्वारा आयुको बाँधकर जघन्य १ अ-प्रा-काप्रतिषु 'अयं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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