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________________ ४, २, १३, १०२.] वेयणसणियासविहाणाणियोगदारं [ ४१५ दवसामिचरिसमयखीणकसायस्स अद्धहरयणिउस्सेहस्स जहण्णोगाहणाए वि घणंगलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताए असंखेज्जगुणत्तवलंभादो।। तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥१८॥ सुगम।। जहण्णा ॥ ६ ॥ कुदो ? खीणकसायचरिमसमए वट्टमाणणाणावरणीयजहण्णदव्वस्स एगसमयट्टिदिदंसणादो, अण्णहा दबस्स जहण्णत्ताणुववत्तीदो। तस्स भावदो कि जहण्णा अजहण्णा ॥१०॥ सुगम। जहण्णा ॥ १०१॥ कुदो ? अपुव्वकरण-अणियट्टिकरण सुहुमसांपराइय-खीणकसाएहि अणुभागखंडयघादेण अणुसमओवट्टणाए च च्छिज्जिदूण जहण्णदव्वम्मि द्विदअणुभागस्स जहण्णभावुवलंभादो। जस्स णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥१०२॥ अपेक्षा ज्ञानावरणीय कर्मके जघन्य द्रव्यके स्वामी व साढ़े तीन रनि प्रमाण शरीरोत्सेधसंयुक्त अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय जीवकी घनांगुलके असंख्यातवें भाग मात्र जघन्य अवगाहना भी असंख्यातगुणी पायी जाती है। • उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥९८॥ यह सूत्र सुगम है। वह जघन्य होती है ॥ ९६ ॥ कारण यह कि क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समयमें वर्तमान जीवके ज्ञानावरणीय सम्बन्धी जघन्य द्रव्यकी एक समय स्थिति देखी जाती है, क्योंकि, इसके विना द्रव्यकी जघन्यता बन नहीं सकती। उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १० ॥ यह सूत्र सुगम है। वह जघन्य होती है ॥ १०१ ॥ कारण कि अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्परायिक और क्षीणकषाय जीवोंके द्वारा किये गये अनुभागकाण्डक घात और अनुसमयापवर्तनासे छिदकर जघन्य द्रव्यमें स्थित अनुभागके जघन्यपना पाया जाता है। जिसके ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥१०२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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