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________________ ४०८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, १३, ७९. गणहीणं चेव होदि ति कधमसंखेज्जगुणहीणत्तं ? ण, असंखेज्जगणहीणजोगेण मणुस्साउअंबंधिय मणुस्सेसु उप्पज्जिय केवलणाणमुप्पाइय सव्वलोगं गयकेवलिस्त असंखेज्जगुणहीणत्तुवलंमादो। तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥७६ ॥ सुगम । णियमा अणुक्कस्सा असंखेजगुणहीणा॥८०॥ लोगे आवुण्णे' जेण आउअट्ठिदी अंतोमुहुत्तमेत्ता चेव तेण कालवेवणा उक्कस्सद्विदीदो असंखेज्जगुणहीणा त्ति सिद्धं । तस्स भावदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥८१ ॥ सुगमं । णियमा अणुक्कस्सा अणंतगुणहीणा ॥२॥ कुदो ? मणुस्साउअउक्कस्साणुभागादो अप्पमत्तसंजदेण बद्धदेवाउअउक्कस्साणुभा. गस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो। - जस्स आउअवयणा कालदो उक्कस्सा तस्स दव्वदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥८३॥ समाधान-नहीं, क्योंकि, असंख्यातगुणहीन योगके द्वारा मनुष्यायुको बाँधकर मनुष्योंमें उत्पन्न हो केवलज्ञानको उत्पन्न करके सर्वलोकको प्राप्त केवलीका द्रव्य असंख्यातगुणा हीन पाया जाता है। उसके कालकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ७९ ॥ यह सूत्र सुगम है ? बह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ८॥ चूंकि लोकपूरण समुद्घातमें आयुकी स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र होती है, अतएव कालवेदना उत्कृष्ट स्थितिकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हीन है; यह सिद्ध है। उसके भावकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥८१॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणी हीन होती है ॥ ८२ ॥ कारण यह कि मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागकी अपेक्षा अप्रमत्तसंयतके द्वारा बाँधी गई देवायुका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा हीन पाया जाता है । जिसके आयुकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥८३ ॥ १ अ-श्रा-काप्रतिषु 'आउवुण्णे' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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