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________________ ४०२) छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १३, ६१. कुदो ? अट्ठमरज्जूणमुक्कमारणंतिएण महामच्छेण उक्कस्सहिदीए' पबद्धाए संतीए तक्खेत्तस्स वि लोगपूरणगदकेवलिखेत्तादो असंखेज्जगुणहीणत्तुवलंभादो। तस्स भावदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥ ६१ ॥ सुगमं । णियमा अणुक्कस्सा अणंतगुणहीणा ॥ ६२॥ कुदो ? उक्कस्सहिदीए सह असादावेदणीयउक्कस्साणुभागे बद्ध वि तस्स अणुभागस्स सुहुमसांपराइयस्स चरिमसमए पबद्धवाणुभागादो अणंतगुणहीणत्तुवलंभादो । एदं कुदो उपलब्भदे ? चउसद्विवदियअप्पाबहुगादो। जस्स वेयणीयवेयणा भावदो उक्कस्सा तस्स दव्वदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ॥६३ ॥ सुगमं। णियमा अणक्कस्सा चउहाणपदिदा॥६४॥ कुदो ? णेरइयचरिमसमए जादवेयणीयउक्कस्सदव्वस्स सुहुमसांपराइयचरिमसमए उक्कस्समावेण सह वृत्तिविरोहादो। तम्हा णियमा अणुक्कस्सत्तं सिद्धं । णियमा अणु कारण कि साढ़ेसात राजु प्रमाण मारणान्तिक समुद्घातको करनेवाले महामत्स्यके द्वारा उत्कृष्ट स्थितिके बाँधनेपर उसका क्षेत्र भी लोकपूरण समुद्घातको प्राप्त केवलीके क्षेत्रसे असंख्यातगुणा हीन पाया जाता है। उसके भावकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥६१॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगणी हीन होती है ॥ ६२॥ कारण यह कि उत्कृष्ट स्थितिके साथ असाता वेदनीयके उत्कृष्ट अनुभागको बाँधनेपर भी उसका अनुभाग सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समयमें बाँधे गये अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणा हीन पाया जाता है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-वह चौंसठ पदवाले अल्पबहुत्वसे जाना जाता है। जिसके वेदनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ६३ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट चार स्थानोंमें पतित होती है ॥ ६४॥ ___कारण कि नारक भवके अन्तिम समयमें उत्पन्न वेदनीयके उत्कृष्ट द्रव्यका सूक्ष्मसाम्परायिकके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट भावके साथ रहना विरुद्ध है। इस कारण वह नियमसे अनुत्कृष्ट होती है, यह सिद्ध है। नियमस्ते अनुत्कृष्ट भी होकर वह चार स्थानोंमें पतित है। यथा--एक १ अ-श्रा-काप्रतिषु -छिदीए' इति पाठः । बका नियमसपअनुकरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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