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________________ ३९६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १३, ४३. जस्स वेयणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सा तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥४३॥ सुगम । णियमा अणुकस्सा असंखेजगुणहीणा ॥४४॥ कुदो ? सत्तम पुढविणेरइयस्स पंचधणुसदुस्सेहस्स उक्कस्सदव्वस्स मा विणासो होहदि ति उक्कस्स जोगविरोहिमारणंतियमणुवगयस्स' उक्कस्सोगाहणाए संखेज्जघणंगुलपमाणाए लोगपूरणउक्कस्सखेत्तादो असंखज्जगुणहीणत्तुवलंभादो। तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥ ४५ ॥ .. सुगम । उकस्सा वा अणकस्सा वा ॥ ४६॥ णेरइयचरिमसमए वट्टमाणेण गुणिदकम्मंसिएण कयउक्कस्सदव्वसंचएण जदि उक्कस्सहिदी पबद्धा तो दव्वेण सह कालो वि उक्कस्सो होदि । अध तत्थ जदि उक्कस्सट्ठिदि ण बंधदि तो अणुक्कस्सा ति घेत्तव्यं । उकस्सादो अणुकस्सा समऊणा ॥४७॥ जिस जीवके वेदनीय कर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ४३ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह नियमसे अनुत्कृष्ट असंख्यातगुणी हीन होती है ॥४४॥ कारण कि पाँच सौ धनुष प्रमाण उत्सेधसे संयुक्त जो सातवीं पृथिवीका नारकी, उत्कृष्ट द्रव्यका विनाश न हो, इसलिये उत्कृष्ट योगके विरोधी मरणान्तिक समुद्घातको नहीं प्राप्त हुआ है। उसकी संख्यात घनांगुल प्रमाण उत्कृष्ट अवगाहना लोकपूरण उत्कृष्ट क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हीन पायी जाती है। उसके कालकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ४५ ॥ यह सूत्र सुगम है। वह उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥ ४६॥ - जिसने उत्कृष्ट द्रव्यके संचयको किया है ऐसे नारक भवके अन्तिम समयमें वर्तमान गुणितकर्माशिकके द्वारा यदि उत्कृष्ट स्थिति बाँधी गई है तो द्रव्य के साथ काल भी उत्कृष्ट होता है। परन्तु यदि वह उक्त अवस्थामें उत्कृष्ट स्थितिको नहीं बाँधता है तो उसके कालवेदना अनुत्कृष्ट होती है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये। ..... वह उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय कम है॥४७ स १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-पा-काप्रतिषु ‘-मणुसगयस्स', ताप्रतौ -मणु [ स ] गयस्स' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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