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________________ ३५८] - छक्खंडागमे देयणाखंड [४, २, १०, ५०. एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उदिण्णा वेयणा। एवमेगो भंगो [१]। अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उदिण्णा वेयणा । एवं वे भंगा [२] उदिण्णेगवयणसुत्तस्स । सिया उवसंता वेयणा ॥ ५० ॥ एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे जीव-पयडि-समयाणमेगवयणेहि जीवबहुवयणेण च |३९१ | जणिदपत्थारं | १२ | ठविय एदस्स सुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उवसंता वेयणा । एवमेगो भंगो। अधवा अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उवसंता वेयणा । एवमेदस्स सुत्तस्स बे चेव भंगा [२] । सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च ॥५१॥ एदस्स दुसंजोगपढमसुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे बज्झमाण-उदिण्णाणं दुसंजोग अब इस प्रकारसे [प्रस्तारको ] स्थापित करके इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार एक भङ्ग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उदीर्ण वेदना है । इस प्रकार उदीर्ण वेदना सम्बन्धी एकवचन सूत्रके दो भङ्ग हैं (२)। कथंचित् उपशान्त वेदना है ॥ ५० ॥ इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय जीव, प्रकृति व समय, इनके एकवचन तथा जीवके जीव प्रकृति ममय जीव | एक अनेक बहुवचन | एक | एक | एक | से उत्पन्न हुए प्रस्तार प्रकृति एक | एक | को स्थापित करके अनेक समय एक | एक इस सूत्रके भङ्गोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उपशान्त वेदना है। इस प्रकार एक भङ्ग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथंचित् उपशान्त वेदना है। इस प्रकार इस सूत्रके दो ही भङ्ग हैं (२)। कथंचित् वध्यमान और उदीर्ण वेदना है ॥ ५१ ॥ दोके संयोग रूप इस प्रथम सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान व उदीर्ण इन दोके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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