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________________ ३४८ ] क्खंडागमे देयणाखंड स्थारं । तेसिं जीव-पयडि-समयपत्थारे च दृविय १२ १११ |११ । १२१ पच्छा एदस्स सुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामी । तं अहा- एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चैव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिष्णा, सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च वेयणा' । एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवामेया पयडी एयसप्रयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं वेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च वेयणा । एवमेदस्स दुसंजोगपढमसुत्तस्स वे चैव भंगा [२] । सिया बज्माणिया च उदिण्णाओ च ॥ ३६ ॥ ऐदस्स दुसंजोगविदियसुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं कस्सामा । तं जहा – एयरस जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चैव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयबद्धा उदिण्णाओ, सिया वन्झमाणिया च उदिण्णाओ च वेयणाओ । एव प्रस्तारको ब० उ० Jain Education International [ ४, २, १०, ३६ एक एक तथा उनके जीव, प्रकृति व समय सम्बन्धी प्रस्तारको भी स्थापित करके एक अनेक उदीर्ण जीव एक अनेक एक एक अनेक अनेक प्रकृति एक एक एक एक एक एक समय एक एक एक अनेक एक अनेक पश्चात् इस सूत्र के अंगोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है - एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार एक भंग हुआ ( १ ) । अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है। इस प्रकार दोके संयोग रूप इस सूत्रके दो ही भंग हैं । (२) । कथंचित् बध्यमान (एक) और उदीर्ण ( अनेक ) वेदनायें हैं ।। ३६ ॥ दो संयोग रूप इस द्वितीय सूत्रके भंगप्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है - एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमे बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदनायें हैं । इस प्रकार एक भंग हुआ ( १ ) । अथवा, १ ताप्रतौ ' च वेयणा [ ए ]' इति पाठः । बध्यमान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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