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________________ ३३४ ) . छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, १०, २८. अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ,. तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपवद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं तिणि भंगा [३] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चत्तारि भंगा [४] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्ममाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ['उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओपयडीओ एयसमयपबद्धाओ] उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं पंच भंगा [५] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं छ भंगा [६] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपवद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं सत्त भंगा [७] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन भंग हुए (३)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चार भंग हुए (४) । अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई । उदीण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई ] उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार पाँच भंग हुए (५)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान; उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार छह भंग हुए (६)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार सात भंग हुए (७)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी १ कोष्ठकस्थोऽयं पाठः प्रतिषु नोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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