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________________ [३३३ ४, २, १०, २८.] वेयणमहाहियारे वैयणवेयणविहाणं पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाश्रो च उवसंता च वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमय. पबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ। एवं सत्तमसुत्तस्स वि तिण्णेव भंगा [३] | कारणं सुगमं । सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च ॥२८॥ एदस्स अट्ठमसुत्तस्स भंगपमाणं वत्तइस्सामो। तं जहा- एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ [एयसमयपबद्धाओ] बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंता: सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेगो भंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमा. णियाओ', तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपरद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयरस जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भंग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सातवें सूत्रके तीन ही भंग है (३)। इसका कारण सु कथंचित् वध्यमान (अनेक) उदीर्ण (अनेक) और उपशान्त ( अनेक) वेदनायें हैं ॥ २८ ॥ इस आठवें सूत्रके भंगप्रमाणको कहते हैं। यथा-एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ [ एक समयमें बाँधी गई ] बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बांधी गई बध्यमान; उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्तः कथंचित् बध्यमान, उदीण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भंग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी १ श्र-प्राप्रत्योः 'वा' इति पाठः । २ अ-आप्रत्योः 'उवसंता', ताप्रतौ 'उवसंता [श्रो] इति पाठः। ३ ताप्रतौ बज्झमाणियाओ[ उदिण्णा ] इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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