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________________ ३३०] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, १०, २४. समयपबद्धा बज्भमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं तिण्णि भंगा [३] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सियो बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चतारि भंगा [४] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्त अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं पंच भंगा [५] । अधवा, एयस्स जीवस्स एयो पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ[एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ] अणेयसमयपबद्धाओ उपसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाश्रो । एवं छ भंगा [६] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च · उवसंताओ च वेयणाओ। एवं सत्त भंगा [७] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन भंग हुए (३)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चार भंग हुए (४)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समय में बाँधी गई उदण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार पाँच भंग हुए (५)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण और उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गईं उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार छह भंग हुए (६)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण और उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सात भंग हुए (७)। अथवा, एक जीवकी एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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