SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, १०, २४.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं [३२९ वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बन्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणिया' च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं तदियसुत्तस्स तिण्णि चेव भंगा [३] । कारणं जाणिदण वत्तव्वं । सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च ॥ २४ ॥ एदस्स तिसंजोगचउत्थसुत्तस्स भंगपमाणपरूवणं वत्तइस्सामो। तं जहा–एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बउझमाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चउत्थसुत्तस्स पढमभंगो [१]। अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्स चेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उव. संताओ च वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एय कथञ्चित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार दो भंग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कश्चित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार तृतीय सूत्रके तीन ही भंग हैं (३)। इसके कारणका जानकर कथन करना चाहिये। कथंचित् वध्यमान (एक), उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त (अनेक) वेदनाएं हैं ॥ २४॥ . त्रिसंयोग रूप इस चतुर्थ सूत्रके भंगोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार हैएक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कश्चित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चतुर्थ सूत्रका यह प्रथम भंग है (१)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भंग हुए (२)। अथवा, १ ताप्रती 'बज्झमाणिया [ो]' इति पाठः । २ अप्रतौ 'उवसंताश्रो', ताप्रतौ 'उवसंता [ो]' इति पाठः। छ. १२-४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy