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________________ [३२१ ४, २, १०, २०.] वेणयमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ। एसो तदियसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ । एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया उदिण्णाओ च उवसंता च वेयणाओ। एवं तिण्णि भंगा [३] । सेसा जीवबहुवयणभंगा उदिण्णगया एत्थ ण उच्चारिजति । कुदो ? उवसंतवेयणाए एयजीवम्मि अवट्ठाणादो उदिण्ण-उवसंताणं जीवं पडि वइयहियरणत्तप्पसंगादो । तेण तदियसुत्तस्स तिण्णि' चेव मंगा [३]। सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च ॥ २०॥ एदस्स चउत्थसुत्तस्स भंगपमाणपरूवणा कीरदे । तं जहा--एयजीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ' च उवसंताओ च वेयणाओ । एसो चउत्थसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बे भंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। यह तृतीय सूत्रका प्रथम भङ्ग है (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भङ्ग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन भङ्ग हैं (३)। उदीर्णगत शेष जीव बहुवचन भङ्गोंका यहाँ उच्चारण नहीं किया जाता है, क्योंकि, उपशान्त वेदनाका अवस्थान एक जीवमें होनेसे जीवके प्रति उदीर्ण और उपशान्त वेदनाओंकी व्यधिकरणताका प्रसङ्ग आता है । इस कारण तृतीय सूत्रके तीन ही भङ्ग हैं (३)। कथंचित् उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ २० ॥ इस चतुर्थ सूत्रके भङ्ग प्रमाणकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसीजीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त, कथश्चित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। यह चतुर्थ सूत्रका प्रथम भङ्ग है (१)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त: कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो भङ्ग हुए (२)। अथवा एक जीवकी एक प्रकृति १ अ-ताप्रत्योः 'तिण्णेव' इति पाठः । २ तापतौः '-पबद्धा [उवसंताप्रो सिया] उदिण्णाश्नो' इति पाठः। छ. १२-४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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