SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२०] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २,१०, १८. एदीए गाहाए' पत्थारो आणिय ठवेयव्यो । पुणो पच्छा सुत्तपरूवणा कायव्वा । तं जहा–एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स एया पयडी 'एयसमयपबद्धा उवसंता, सिया उदिण्णा च उवसंता च वेयणा । एवं पढमसुत्तस्स एको चेव भंगो ॥१॥ सिया उदिण्णा च उवसंताओ च ॥१८॥ एदस्स विदियसुत्तस्स भंगंपरूवणं कस्सामो। तं जहा--एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णा च उवसंताओ वेयणाओ। एवं विदियसुत्तस्स एसो पढमभंगो [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बेभंगा [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स एया पयडी एयममयपबद्धा उदिण्णा, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णा" च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं विदियसुत्तस्स तिण्णि चेव भंगा, णिरुद्धगजीवत्तादो। सिया उदिण्णाओ च उवसंता च ॥ १६ ॥ एदस्स तदियसुत्तस्स भंगपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया इस गाथाके अनुसार प्रस्तारको लाकर स्थापित करना चाहिये । पुनः पश्चात् सूत्रकी प्ररूपणा करनी चाहिये । यथा-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है । इस प्रकार प्रथम सूत्रका एक ही भङ्ग है (१)। कथंचित् उदीर्ण (एक) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ १८॥ इस द्वितीय सूत्रके भङ्गोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार द्वितीय सूत्रका यह प्रथम भङ्ग है (१)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार दो भङ्ग हुए (२)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार द्वितीय सूत्रके तीन ही भङ्ग हैं, क्योंकि, एक जीवकी विवक्षा है। कथंचित् उदीर्ण ( अनेक ) और उपशान्त ( एक ) वेदनायें हैं ॥ १६ ॥ इस तृतीय सूत्रके मङ्गोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति १ अ-श्राप्रत्योः ‘गाह' इति पाठः। २ अ अापत्योः 'एया' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'एयस्स' इति पाठः। ४ अप्रतौ 'उदिण्णाश्रो', श्राप्रती 'प्रोदिण्णा' ताप्रतौ उदिण्णाश्रो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy