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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ७, १, भावपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदव्यभावो णाम । णोआगमदव्वभावो तिविहोजाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तणोआगमदव्वभावभेएण'। जाणुगसरीर-भवियं गदं । तव्वदिरित्तदव्यभावो दुविहो-कम्मदव्वभावो णोकम्मदव्वभावो चेदि । तत्थ कम्मदव्वभावो णाणावरणादिदव्वकम्माणं अण्णाणादिसमुप्पायणसत्ती । णोकम्मदव्वभावो दुविहोसचित्तदव्वभावो अचित्तदव्वभावो चेदि । तत्थ केवलणाण-दंसणादियो सचित्तदव्वभावो । अचित्तदव्वभावो दुविहो-मुत्तदव्वभावो अमुत्तदव्यभावो चेदि । तत्थ वण्ण-गंध-रसफासादियो मुत्तदव्वभावो । अवगाहणादियो अमुत्तदव्वभावो । भावभावो दुविहो-आगमणोआगमभावभावभेदेण' । तत्थ भावपाहुडजाणगो उवजुत्तो आगमभावभावो । [णोप्रागमभावभावो] दुविहो-तिव्व-मंदभावो णिजराभावो चेदि । तिव्व-मंददाए भावसरूवाए कधं भावभावववएसो १ ण, तिव्व-तिव्वयर-तिव्वतम-मंद-मंदयर-मंदतमादिगुणेहि भावस्स वि भावुवलंभादो । ण णिज्जराए भावभावत्तमसिद्धं, सम्मत्तुप्पत्तियादिभावभावेहि जणिदणिज्जराए उवयारेण तदविरोहादो । एत्थ कम्मभावेण पयदं, अण्णेसिं वेयणाए संबंधाभावादो। वेयणाए भावो वेयणभावो, वेयणभावस्स विहाणं परूवणं वेयणभावविहाणं । द्रव्यभाव । उनमें भावप्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यभाव कहलाता है। नोआगमद्रव्यभाव ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यभावके भेदसे तीन प्रकारका है। इनमें ज्ञायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्यभाव ज्ञात हैं । तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यभाव दो प्रकारका है-कर्मद्रव्यभाव और नोकर्मद्रव्यभाव । उनमें ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मोकी जो अज्ञानादिको उत्पन्न करने रूप शक्ति है. वह कर्मद्रव्यभाव कही जाती है । नोकर्मद्रव्यभाव दो प्रकारका है-सचित्तद्रव्यभाव और अचित्तद्रव्यभाव । उनमें केवलज्ञान व केवलदर्शन आदि सचित्तद्रव्यभाव हैं। अचित्तद्रव्यभाव दो प्रकारका है-मूर्तद्रव्यभाव और अमूर्तद्रव्यभाव । उनमें वर्ण, गन्ध, रस व स्पर्श आदिक मूर्तद्रव्यभाव हैं। अवगाहनादिक अमूर्तद्रव्यभाव हैं। भावभाव दो प्रकारका है--आगमभावभाव और नोआगमभावभाव । इनमें भावप्राभृतका जानकार उपयोग युक्त जीव आगमभावभाव कहा जाता है। [नोआगमभावभाव] दो प्रकारका है-तीत्र-मन्दभाव और निर्जराभाव । शङ्का-जब कि तीव्रता व मन्दता भावस्वरूप हैं तब उन्हें भावभाव नामसे कहना कैसे उचित कहा जा सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर और मन्दतम आदि गुणोंके द्वारा भावका भी भाव पाया जाता है। निर्जराको भी भावभावरूपता असिद्ध नहीं है, क्योंकि, सम्यक्त्वोत्पत्ति आदिक भावभावांसे उत्पन्न होनेवाली निजराके उपचारसे भावभाव स्वरूप होनेमें कोई विरोध नहीं आता। __यहाँ कर्मभाव प्रकृत है क्योंकि, कर्मभावको छोड़कर और दूसरों की वेदनाका यहाँ सम्बन्ध नहीं है। वेदनाका भाव वेदनाभाव, वेदनाभावका विधान अर्थात् प्ररूपणा वेदनाभावविधान १. ताप्रतौ ‘णोअागमदव्वभेएण' इति पाठः। २. अा-ताप्रत्योः ‘णोअागमभावभेएण' इति पाठः । ३. अ-श्राप्रत्योः 'भावपरूवाए', ताप्रतौ ‘भावपरूपणाए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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