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________________ ३१० छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १०, ९. जदि वि एकस्स जीवस्स एगा चेव पयडी होदि, तो वि अणेगेसु समएसु बद्धत्तादो उवसंतवेयणाए बहुत्तं जुज्जदे । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं बेउच्चारणाओ [२] । अधवा, एयस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपवद्धाओ सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं तिण्णि उच्चारणाओ [३] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं चत्तारि उच्चारणाओ [४] । एत्थ जीवबहुत्तं पेक्खिदण उवसंतवेयणाए एगसमयपबद्धएयपयडीए बहुत्तं गहिदं । अथवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं पंच उच्चारणाओ [५] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एणसमयपबद्धाओ सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं छ उच्चारणाओ [६] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवं सत्त उच्चारणा [७] । एवं उवसंतवेयणाए सत्तबहुवयणभंगा परूविदा। एवं बज्झमाण-उदिण्ण उवसंताणमेग-बहुवयणपडिबद्धसुत्तछक्क परूविय दुसंजोगभंगपरूवणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च ॥६॥ वेयणा इदि अणुवट्टदे। तेण वेयणासदोएदस्स सुत्तस्स अवयवभावेण दट्टयो। एदस्स जीवकी एक ही प्रकृति है, तो भी अनेक समयों में बांधे जानेके कारण यहाँ उपशान्त वेदनाका बहुत्व युक्तियुक्त है। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई कश्चित् उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दो उच्चारणायें हुई (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गईं कथञ्चित् उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन उच्चारणायें हुई (३)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कश्चित् उपशान्त वेदनाओं स्वरूप है। इस प्रकार चार उच्चारणायें हुई (४)। यहाँ जीव बहुत्व की अपेक्षा करके उपशान्त वेदनारूप एक समयमें बाँधी गई एक प्रकृतिके बहुत्वको ग्रहण किया गया है। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई कथञ्चित् उपशान्त वेदनाओंरूप है। इस प्रकार पाँच उच्चारणायें हुई (५)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गईं कथञ्चित् उपशान्त वेदनायें है। इस प्रकार छह उच्चारणायें हुई (६)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गईं कथश्चित् उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार सात उच्चारणायें हुई (७)। इस प्रकार उपशान्त वेदना सम्बन्धी सात वहुवचन भंगोंकी प्ररूपणा की गई है। इस प्रकार बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाके एक व बहवचनोंसे सम्बद्ध छह सूत्रोंकी प्ररूपणा करके द्विसंयोगजनित भंगोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है ॥ ॥ यहाँ वेदना शब्दकी अनुवृत्ति ली गई है। इसलिये वेदना शब्दको इस सूत्रके वपअरूयव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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