SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३०९ ४,२,१०, ८.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं एगा उच्चारणसलागा [१] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ एयसमयपत्रद्धाओ सिया उदिण्णाओ । एवं बेउच्चारणाओ [२] । अधवा, एयस्स जीवस्स अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ सिया उदिण्णाओ वेयणाओ। एवं तिणि उच्चारणाओ [३] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धाओ सिया उदिण्णाओ वेयणाओ। एत्थ जीवबहुत्तं पेक्खिय उदिण्णबहुत्तं गहियं । एवं चत्तारि उच्चारणाओ [४] अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा सिया उदिण्णाओ वेयणाओ। एवं पंच उच्चारणाओ [५] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ सिया उदिण्णाओ वेयणाओ। एवं छ उच्चारणाओ [६] । अधवा, अणेयाणं जीवाणं अणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ सिया उदिण्णाओ वेयणाओ। एवं सत्त उच्चारणाओ [७] । एवं उदिण्णस्स बहुवयणसुत्तपरूवणा गदा। सिया उवसंताओ वेयणाओ॥८॥ एदस्स उवसंतबहुवयणसुत्तस्स आलावे भण्णमाणे जीव-पयडि-समयाणमेय-बहुवयणाणि ठविय तेसिमक्खसंचारजणिदपत्थारं च ठवेदूण तत्थ एगवयणपढमालावं मोत्तण सेससहि वियप्पेहि एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणा कायव्वा । तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा सिया उवसंताओ वेयणाओ। एवमेगुच्चारणा [१] । एसा वह अनेक समयोंमें बाँधी गई है। यहाँ एक उच्चारणशलाका हुई (१)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गईं कथञ्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार दो उच्चारणशलाकायें हुई (२)। अथवा, एक जीवकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयों में बाँधी गई कथश्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार तीन उच्चारणायें हुई (३)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई कथञ्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। यहाँ जीवोंके बहुत्वकी अपेक्षा उदीर्ण वेदनाका बहुत्व ग्रहण किया गया है। इस प्रकार चार उच्चारणायें हुई (४)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई कथञ्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार पाँच उच्चारणायें हुई (५)। अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई कथञ्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं । इस प्रकार छह उच्चारणायें हुई (६) । अथवा, अनेक जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई कश्चित् उदीर्ण वेदनायें हैं। इस प्रकार सात उच्चारणायें हुई (७)। इस प्रकार उदीर्ण वेदनाके बहुवचन सम्बन्धी सूत्रकी प्ररूपणा समाप्त हुई। कथंचित् उपशान्त वेदनायें हैं ॥८॥ इस उपशान्त वेदनाके बहुवचन सम्बन्धी सूत्रके आलापोंका कथन करते समय जीव, प्रकृति और समय इनके एक व बहुवचनोंको तथा उनके अक्षसञ्चारसे उत्पन्न प्रस्तारको भी स्थापित करके उनमें एकवचन रूप प्रथम आलापको छोड़कर शेष सात विकल्पों द्वारा इस सूत्रके अथकी प्ररूपणा करनी चाहिये । वह इस प्रकारसे-एक जीवकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई कथञ्चित् उपशान्त वेदनाओं स्वरूप है। इस प्रकार एक उच्चारणा हुई (१)। यद्यपि यह एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy