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________________ ३०६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १०, ५. 'णाणावरणीयवेयणा' इदि सव्वत्थ अणुवट्टदे । बंधसुत्ताणंतरं उदिण्णसुतं किमटुं बच्चदे ? ण, बज्झमाणुदिण्णवदिरित्तो सव्वो कम्मपोग्गलक्खंधो उवसंतसण्णिदो त्ति जाणावणटुं तदुत्तीदो। एस्थ जीव-पयडि-समयाणं एगवयण-बहुवयणाणि ठविय ३३३ पुणो एत्थ अक्खपरावलं करिय उप्पाइदउदिण्णसंदिट्ठी एसा जीव-पयडि-समय ११११२२२२ पडिबद्धा ११२२११२२ । एत्थ उवरिमपंती जीवाणं, मज्झिमपंती पयडीणं, हेहिमपंती १२१२१२१२ समयाणं। एत्थ एयस्स जीवस्स एयपयडी एयसमयपबद्धा सिया उदिण्णा वेयणा । एदेण पढमालावेण एदं सुत्तं परूविदं होदि । एत्थ उदिण्णे परूविजमाणे कधं कालस्स बहुत्तं लब्भदे ? ण, अणेगेसु समएसु बद्धाणमेगसमए उदओवलंभादो। सिया उवसंता वेणया ॥ ५ ॥ पुणो एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे जीव-पयडि-समयाणमेग-बहुवयणाणि 'ज्ञानावरणीयवेदना' इसकी सब सूत्रोंमें अनुवृत्ति ली जाती है। शंका-बन्धसूत्र के पश्चात् उदीर्णसूत्र किसलिये कहा जा रहा है। समाधान-नहीं, क्योंकि, बध्यमान और उदीर्णसे भिन्न सब कम-पुद्गलस्कन्धको उपशान्त संज्ञा है, यह बतलाने के लिये बन्धसूत्रके पश्चात् उदीर्णसूत्र कहा गया है। यहाँ जीव, प्रकृति और समयके एकवचन व बहुवचनको स्थापित कर.......... पश्चात् अक्षपरावर्तन करके उत्पन्न की गई उदीर्ण कर्मपुद्गलस्कन्धकी जीव, प्रकृति एवं समयसे सबद्ध यह संदृष्टि है जीव | एक एक एक एक अनेक अनेक अनेक अनेक प्रकृति एक | एक अनेक अनेक एक एक अनेक अनेक समय एक अनेक एक अनेक एक अनेक एक अनेक यहाँ ऊपरकी पंक्ति जीवोंकी है, मध्यकी पंक्ति प्रकृतियोंकी है, और अधस्तन पंक्ति समयों की है। यहाँ एक जीवकी एक प्रकृति एक समय में बाँधी गई कथञ्चित् उदीर्ण वेदना है। इस प्रथम आलापसे इस सूत्रकी प्ररूपणा हो जाती है। शंका-यहाँ उदीकी प्ररूपणा करते समय कालका बहुत्व कैसे पाया जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, अनेक समयोंमें बाँधी गई प्रकृतियोंका एक समयमें उदय पाया जाता है। ज्ञानावरणीयवेदना कंचित् उपशान्त वेदना है ॥ ५ ॥ इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय जीव, प्रकृति और समय, इनके एकवचन व बहु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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