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________________ ४, २, ८,८.] वेयणमहाहियारे वेयणपञ्चयविहाणं [२६३ रादिभोयणं । तेण रोदिभोयणपञ्चएण णाणावरणीयवेयणा समुप्पज्जदे । जेणेदं सुतं देसामासियं तेणेत्थ महु-मांस-पंचुंवर-णिवसण-हुल्ल'भक्खण-सुरापान-अवेलासणादीणं पि णाणावरणपच्चयत्तं परू वेदव्व) एवमसंजमपञ्चओ परूविदो। संपहि कसायपच्चयपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि(एवं कोह-माण-माया-लोह-राग-दोस-मोह-पेम्मपच्चए ॥८॥ हृदयदाहांगकंपाक्षिरागेन्द्रियापाटवादि'निमित्तजीवपरिणामः क्रोधः । विज्ञानश्वर्य-जाति-कुल-तपो-विद्याजनितो जीवपरिणामः औद्धत्यात्मको मानः । स्वहृदयप्रच्छादानार्थमनुष्ठानं माया। बाह्यार्थेसु ममेदं बुद्धिर्लोभः । माया-लोभ-वेदत्रय-हास्य-रतयो रागः । क्रोध मानारति-शोक-जुगुप्सा-भयानि द्वेषः । क्रोध-मान-माया-लोभ-हास्य-रत्यरतिशोक-भय जुगुप्सा-स्त्री-पुं-नपुंसकवेद-मिथ्यात्वानां समूहो मोहः । मोहपञ्चयो कोहादिसु पविसदि त्ति किण्णावणिज्जदे १ ण, अवयवावयवीणं वदिरेगण्णयसरूवाणमणेगेगसंखाणं ओदनको भोजन कहा गया है। अथवा [ भुज्यते अनेनेति भोजनम्' ] इस निरुक्ति के अनुसार आहारग्रहणके कारणभूत परिणामको भी भोजन कहा जाता है। रात्रिमें भोजन रात्रि भोजन, इस प्रकार यहाँ तत्पुरुष समास है । उक्त रात्रिभोजन प्रत्ययसे ज्ञानावरणीयको वेदना उत्पन्न होती है। चूंकि यह सूत्र देशामर्शक है अतः उससे यहाँ मधु, मांस, पाँच उदुम्बर फल, निन्ध भोजन और फूलोंके भक्षण, मद्यपान तथा असामयिक भोजन आदिको भी ज्ञानावरणीयका प्रत्यय बत ना चाहिये। इस प्रकार असंयम प्रत्ययकी प्ररूपणा की गई। अब व.षाय प्रत्ययकी प्ररूपणाके लिये आगेका सूत्र कहा जाता है ___इसी प्रकार क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह और प्रेम प्रत्ययोंसे ज्ञानावरणीय वेदना होती है ॥ ८॥ ... हृदयदाह, अंगकम्प, नेत्ररक्तता और इन्द्रियोंकी अपटुता आदिके निमित्तभूत जीवके परिणामको क्रोध कहा जाता है। विज्ञान, ऐश्वर्य, जाति, कुल, तप और विद्या इनके निमित्तसे उत्पन्न उद्धतता रूप जीवका परिणाम मान कहलाता है । अपने हृदय के विचारको छुपानेकी जो चेष्टा की जाती है उसे माया कहते हैं । बाह्य पदार्थों में जो 'यह मेरा है' इस प्रकार अनुराग रूप बुद्धि होती है उसे लोभ कहा जाता है। माया, लोभ, तीन वेद, हास्य और रति इनका नाम राग है। क्रोध, मान, अरति. शोक, जुगुप्सा और भय, इनको द्वेष कहा जाता है। क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद और मिथ्यात्व इनके समूहका नाम मोह है। ___ शंका-मोहप्रत्यय चूंकि क्रोधादिकमें प्रविष्ट है अतएव उसे कम क्यों नहीं किया जाता है ? समाधान नहीं, क्योंकि क्रमशः व्यतिरेक व अन्वय स्वरूप, अनेक व एक संख्यावाले, १ प्रापतौ 'कुल्ल' इति पाठः । २ तापतौ 'रागैद्रियपाटवादि' इति पाठः ।... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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