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________________ २७६ ] खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ८, २. रादीहिंतो ते व पाणादिवादो । के पाणा १ चक्खु -सोद-घाण - जिन्भा- पासिंदिय-मण-वयणकायबलुस्सासणिस्सासाउआणि त्ति दस पाणा । पचओ कारणं णिमित्तमिच्चणत्थंतरं । पाणादिवादी च सो पच्चश्रो च पाणादिवादपचओ । पाणादिवादो णाम हिंसाविसयजीववावारो । सो च पञ्जाओ । तदो ण सो कारणं, पजायस्स' एयंतस्स कारणत्तविरोहादो त्ति ? ण, पञ्जायस्स पहाणी भूदस्स आयड्डियपरवक्खस्स कारणत्तवलंभादो । तम्हि पाणादिवादपच्चर णाणावरणीयवेयणा होदि । कथं पच्चयस्स सत्तमीए उत्पत्ती ? ण, पाणादिवादपच्चयविसए णाणावरणीयवेयणा वट्टदि त्ति संबंधिजमाणे सत्तमीविहत्तीए इसइयाए उत्पत्तिं पडि विरोहाभावादो। अधवा, तइयत्थे सत्तमी दट्ठव्वा । तधा च पाणादिवादपच्चएण णाणावरणीयवेयणा होदि ति सिद्धो सुत्तट्ठो । पाणादिवादो जदि णाणावरणीयबंधस्स पच्चओ होज तो तिहुवणे द्विदकम्मइयखंधा णाणावरणीयपच्चएण अकमेण किण्ण परिणमंते, कम्मजोगत्तं पडि विसेसाभावादो ? ण, तिहुवण अंतर कमइय व्यापारादिकोंसे होता है वे भी प्राणातिपात ही कहे जाते हैं । शंका- प्राण कौनसे हैं ? समाधान चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा व स्पर्शन, ये पाँच इन्द्रियाँ; मन, वचन और काय, ये तीन बल; तथा उच्छ्रास- निःश्वास एवं आयु. ये दस प्राण हैं । प्रत्यय, कारण और निमित्त, ये समानार्थक शब्द हैं । प्राणातिपात रूप जो प्रत्यय वह प्राणातिपातप्रत्यय, इस प्रकार यहाँ कर्मधारय समास है । शंका- प्राणातिपातका अर्थ हिंसा विषयक जीवका व्यापार है । वह चूँकि पर्याय स्वरूप है अतः वह कारण नहीं हो सकता, क्योंकि, एकान्त पर्यायके कारणताका विरोध है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, यहाँ पर्याय प्रधान है और परपक्ष आकर्षित होकर उसमें गृहीत है इसलिए उसे कारण मानने में कोई विरोध नहीं है । उक्त प्राणातिपात प्रत्ययके होनेपर ज्ञानावरणीय वेदना होती है । शंका - प्रत्यय शब्द की सप्तमी विभक्ति कैसे संगत है ? समाधान- नहीं, क्योंकि प्राणातिपात प्रत्यय के विषय में ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना होती है, ऐसा सम्बन्ध करनेपर विषयार्थक सप्तमी विभक्तिकी उपपत्ति में विरोध नहीं आता । अथवा, तृतीया विभक्तिके अर्थ में सप्तमी विभक्ति समझना चाहिये। इस प्रकार प्राणातिपात प्रत्ययसे ज्ञानावरणीय वेदना होती है, यह सूत्रका अर्थ सिद्ध होता है । शंका- यदि प्राणातिपात ज्ञानावरणीयके बन्धका कारण है तो तीनों लोकों में स्थित कार्मण स्कन्ध ज्ञानावरणीय पर्याय स्वरूपसे एक साथ क्यों नहीं परिणत होते हैं, क्योंकि, उनमें कर्मयोग्यता की अपेक्षा समानता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, तीनों लोकोंके भीतर स्थित कार्मण स्कन्धमें देश विषयक १ प्रतिषु 'पजचयस्स -' इति पाठः । २ श्राप्रतौ 'आयदिय' शेषपत्योः 'आयट्टिय' इति पाठः । ३ - प्रत्योः ' ' - पच्चए हि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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