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________________ सुगम। २६४] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ७, २८३. एवं दुगुणवड्डिदा जाव जवमज्झं ॥ २८३ ॥ सुगममेदं, अणंतरोवणिधाए परूविद विसेसत्तादो। जवमझादो हेडिमदुगुणवड्डिअद्धाणाणि सरिसाणि, पढमदुगुणवड्डिप्पहुडि उवरिमदुगुणवड्डीसु दुगुणवढेि पडि हेडिमदुगुणवड्डीए एगजीवव ड्डिदअद्धाणस्स अद्धद्धं गंतूण एगेगजीववड्डीए उवलंभादो। जवमज्झादो उवरिमदुगुणहाणीयो वि हेड्डिमदुगुणहाणीहि अद्धाणेण समाणाओ, दुगुणदुगुणमद्धाणं गंतूण एगेगजीवपरिहाणीदो । तेण परमसंखेजलोगं गंतूण दुगुणहीणा ॥२८४ ॥ एवं दुगुणहीणा जाव उकास्सियअणुभागबंधज्झवसाणहाणे त्ति ॥ २८५ ॥ एवं पि सुगमं । एगजीवअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवड्डि - हाणिहाणंतरमसंखेज्जा लोगा॥२८६॥ गुणहाणिअद्धाणं पुव्वं परू विद, पुणरिह किमटुं परूविज्जदे ? गुणहाणिअद्धाणादो णाणागुणहाणिसलागासु अाणिज्जमाणासु मंदमेहाविसिस्सजणसंभालणटुं परूविज्जदे । इस प्रकार यवमध्य तक वे दूनी दूनी वृद्धिसे युक्त हैं ॥ २८३ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, इसकी विशेषताकी प्ररूपणा अनन्तरोपनिधामें की जा चुकी है। यवमध्यसे नीचेके दुगुणवृद्धिअध्वान सदृश है, क्योंकि, प्रथम दुगुणवृद्धिसे लेकर आगेकी दुगुण वृद्धियोंमेंसे प्रत्येक दुगुणवृद्धिमें अधस्तन दुगुणवृद्धिके एक जीव वृद्धि युक्त अध्वानका आधा आधा भाग जाकर एक एक जीवकी वृद्धि पायी जाती है। यवमध्यसे ऊपरकी दुगुणहानियाँ भी अधस्तन दुगुणहानिसे अध्वानकी अपेक्षा समान हैं, क्योंकि, दूना दूना अध्वान जाकर एक एक जीवकी हानि होती है। उससे आगे असंख्यात लोक जाकर वे दूने हीन होते हैं ॥ २८४ ॥ यह सूत्र सुगम है। इस प्रकारसे वे उत्कृष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानके प्राप्त होने तक वे दूने दूने हीन हैं ॥ २८५ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। एक जीवके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानोंसम्बन्धी दुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यात लोकप्रमाण हैं ॥ २८६ ॥ शङ्का-गुणहानिअध्वानकी प्ररूपणा पहिले की जा चुकी है, उसकी प्ररूपणा यहाँ फिरसे किसलिये की जा रही है ? समाधान-गुणहानिअध्वानसे नानागुणहानिशलाकाओंको लाते समय मन्दबुद्धि शिष्योंको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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