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________________ ४, २, ७, २५२ ] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [२११ अणप्पिदवड्डि-हाणीणं गदस्स तासिं एगसमयकालदसणादो । उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २५२ ॥ एदासिं दोण्णं वड्डि-हाणीणं मझे एक्किस्से वड्डीए हाणीए वा सुट्ट जदि दीहकालमच्छदि तो अंतोमुहुत्तं चेव णो अहियं, जिणोवएसाभावादो। विसुज्झमाणो णिरंतरमंतोमुहुत्तकालमसुहाणं पयडीणमणुभागट्ठाणाणि अणंतगुणहाणीए बंधदि, सुहाणमणंतगुणवड्डीए । संकिलेसमाणो असुहाणं पयडीणमणुभागट्टाणाणि णिरंतरमंतोमुहुत्तकालमणंतगुणवड्डीए सुहाणमणुभागट्ठाणाणि अणंतगुणहाणीए बंथदि ति भणिदं होदि । एदेहि दोहि अणियोगदारेहि सूचिदमणुभागवड्डि-हाणिकालाणमप्पाबहुगं वत्त इस्सामो । तं जहा-सव्वत्थोवो अणंतभागवड्डि-हाणिकालो। असंखेज्जभागवड्डि-हाणिकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो ? कुदो ? अणंतभागवड्डि-हाणिविसयादो असंखेज्जभागवड्डि-हाणिविसयस्स असंखेज्जगुणत्तवलंभादो। संखेज्जभागवड्डि-हाणिकालो संखेज्जगुणो। कुदो ? असंखेज्जभागवड्वि-हाणिविसयं पेक्खिदूण संखेज्जभागवड्डि-हाणिविसयस्स संखेज्जगुणत्तवलंभादो। तं च संखेज्जगुणत्तं कत्तो णव्वदे ? जुत्तीदो । सा च जुत्ती पुवं परूविदा ति णेह परू में अविवक्षित वृद्धि अथवा हानिके बन्धको प्राप्त हुए जीवके उनका एक समय काल देखा जाता है। उत्कृष्टसे वे अन्तर्मुहूर्त काल तक होती हैं ॥ २५२ ॥ ___ इन दो वृद्धि हानियोंके मध्यमें एक वृद्धि अथवा हानिमें अतिशय दीर्घ काल तक यदि रहता है तो अन्तर्मुहूर्त ही रहता है, अधिक काल तक नहीं; क्योंकि, वैसा जिन भगवान्का उपदेश नहीं है । विशुद्धिको प्राप्त होनेवाला जीव निरन्तर अन्तर्मुहूर्त काल तक अशुभ प्रकृतियोंके अनुभागस्थानीको अनन्तगुणहानिके साथ बाँधता है तथा शुभ प्रकृतियोंके अनुभागस्थानोंको अनन्तगुणवृद्धिके साथ बाँधता है। इसके विपरीत संक्लेशको प्राप्त होनेवाला जीव अशुभ प्रकृतियोंके अनुभागस्थानोंको निरन्तर अन्तर्मुहूर्त काल तक अनन्तगुणवृद्धिके साथ बाँधता है तथा शुभ प्रकृतियोंके अनुभागस्थानोंको अनन्तगुणहानिके साथ वाँधता है, यह उक्त कथनका अभिप्राय है। इन दो अनुयोगद्वारोंके द्वारा सूचित अनुभागकी वृद्धि एवं हानिके काल सम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते हैं। वह इस प्रकार है अनन्तभागवृद्धि व हानिका काल सबसे स्तोक है। उससे असंख्यातभागवृद्धि व हानिका काल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार आवलीका असंख्यातवाँ भाग है, क्योंकि, अनन्तभागवृद्धि व हानिके विषयकी अपेक्षा असंख्यातभागवृद्धि व हानिका विषय असंख्यातगुणा पाया जाता है। उससे संख्यातभागवृद्धि व हानिका काल संख्यातगुणा है, क्योंकि, असंख्यातभागवृद्धि व हानिके विषयकी अपेक्षा संख्यातभागवृद्धि व हानिका विषय संख्यातगुणा पाया जाता है। शंका-वह संख्यातगुणत्व किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-वह युक्तिसे जाना जाता है। और वह युक्ति चूंकि पहिले बतलायी जा चुकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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