SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ७, २१४ दिकमेण, पिसुलाणि संकलणसरूवेण, पिसुलापिसुलाणि विदियवार संकलण सरूवेण, चुण्णियाओ तिण्णिवार संकलणासरूवेण, चुण्णाचुण्णियाओ चउत्थवारसंकलणसरूवेण, भिण्णाओ पंचमवार संकलणसरूवेण, भिण्णाभिण्णाओ छट्ठवारसंकलणसरूवेण गच्छति । एवं छिण्ण-छिण्णा छिष्ण तुट्ट तुट्टतुट्ट दलिद-दलिदद लिदादीणं पिणेदव्वं । एदेसिमाणयणसुतं - वृद्धार्भाजितश्च पदवृद्धैः । गच्छ संपातफलं 'समाहतः सन्निपातफलम् ॥ संपहिएदेसिं सव्वेसिं पि जहण्णद्वाणादो आणयणविहाणं वुच्चदे । तं जहांपढमकंदपणोवट्टिदसव्वजीवरासिं विरलिय जहण्णट्ठाणं समखंड काढूण दिण्णे एक्केकस्स रूवस्स कंदयमेत्ता सयलपक्खेवा पावेंति । पुणो एदिस्से विरलगाए हेट्ठा रूवूणकंदयद्धेगोवट्टिदसव्वजीवरासिं विरलेदूण उवरिमविरलणाए एगरूवधरिदं समखंडं काढूण दिण्णे एक्केकस्स वस्स रूवूणकंदयस्स संकलणमेत्त पिसुलाणि पावेंति । पुणो एदिस्से विदियविरलगाए हेट्ठा रूवूणकंदय संकलणगुणिद सव्व जीवरासिं दुरूवूणकंदयस्स विदियचार संकलणाए ओट्टिय लद्धं विश्लेदूण विदियविरलणाए एगरूवधरिदं समखंड करिय दिण्णे एकेक्कस्स रूवस्त दुरूवूणकंदयस्स विदियवारसंकलणामेतपिलापिसुलाणि पावंति । एवं कंदयम है | प्रक्षेप एक आदि क्रमसे, पिशुल संकलन स्वरूपसे, पिशुलापिशुल द्वितीय वार संकलन स्वरूपसे, घूर्णिकायें तीन वार संकलन स्वरूपसे, चूर्णाचूर्णिकार्ये चतुर्थ वार संकलन स्वरूपसे, भिन्न पंचम वार संकलन स्वरूपसे तथा भिन्नाभिन्न छठे वार संकलन स्वरूपसे जाते हैं । इसी प्रकार छिन्न, छिन्नाछिन्न, त्रुटित, त्रुटितात्रुटित, दलित और दलितादलित आदिकों के भी ले जाना चाहिये । इनके लानेका सूत्र - एक एक अधिक होकर पद प्रमाण वृद्धिंगत गच्छको पद प्रमाण वृद्धिको प्राप्त हुए एक आदि अंकों से भाजित करनेपर संपातफल अर्थात् एक संयोगी भंगोंका प्रमाण आता है । इनको परस्पर गुणित करनेसे सन्निपातफल अर्थात् द्विसंयोगी आदि भंग आते हैं ।। अब इन सभी के जघन्य स्थानसे लानेकी विधिका कथन करते हैं । वह इस प्रकार हैप्रथम काण्डकसे अपवर्तित सब जीवराशिका विरलन करके जघन्य स्थानको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति काण्डक प्रमाण सकलप्रक्षेप प्राप्त होते हैं। फिर इस विरलनके नीचे एक कम काण्डकके अर्ध भागसे अपवर्तित सब जीवराशिका विरलनकर उपरिम विरलन के एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक कम काण्डक संकलन प्रमाण पिशुल प्राप्त होते हैं। फिर इस द्वितीय विरलनके नोचे एक कम काण्डकके संकलनसे गुणित सब जीवराशिको दो कम काण्डकके द्वितीय वार संकलनसे अपवर्तित कर लब्धका विरलन करके द्वितीय विरलनके एक अंक के प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर एक अंकके प्रति दो कम काण्डकके द्वितीय वार संकलन प्रमाण पिशुलापिशुल प्राप्त होते हैं। इस प्रकार काण्डक प्रमाण विरलन राशियोंको जान करके १ - श्रापत्योः 'समाहितः' इति पाठः । २ - श्रा प्र० ५ पृ० १६३, क० पा० २, पृ० ३०० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy