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________________ पृष्ठ 9 Nrn Isis is IS ( ११ ) विषय पृष्ठ विषय अनन्तरोपनिधाविचार २४७ | शब्द और ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा ज्ञानापरम्परोपनिधाविचार २६३ वरणका स्वामी ३०० यवमध्यप्ररूपणा २६६ इसी प्रकार शेष सात कर्मों का स्वामी ३०१ स्पर्शनविचार २६७ १० वेदनावेदनविधान ३०२-३६३ अल्पबहुत्वविचार २७२ | वेदनवेदनविधानकी प्रतिज्ञा और सार्थकता ३०२ ८ वेदनाप्रत्ययविधान २७५-२६३ | नैगमनयकी अपेक्षा सभी कर्मप्रकृति हैं वेदनाप्रत्ययविधान कहनेकी प्रतिज्ञा व • ऐसी प्रतिज्ञा ३०२-३०४ उसकी सार्थकता २७५ ज्ञानावरण कर्म बध्यमान, उदीर्ण और नैगम, संग्रह और व्यवहारनयसे ज्ञाना- उपशान्त एक और नाना प्रत्येक व वरणके प्राणातिवादप्रत्ययका विचार २७५ संयोगी भंग रूप कैसे है इसका अलग मृषावादप्रत्ययका विचार २७६ अलग विचार ३०४ अदत्तादानप्रत्ययका विचार २८१ इसी प्रकार सात कर्मोको जाननेकी सूचना ३४२ मैथुनप्रत्ययका विचार २८२ व्यवहारनयकी अपेक्षा ज्ञानावरण कर्मके परिग्रहप्रत्ययका विचार २८२ भंगोंका अलग अलग विचार ३४३ रात्रिभोजनप्रत्ययका विचार २८२ इसी प्रकार शेष सात कर्मों के क्रोध, मान आदि प्रत्ययोंका विचार २८३ जाननेकी सूचना ३५६ निदानप्रत्ययका विचार २८४ संग्रहनयकी अपेक्षा ज्ञानावरण कर्मके अभ्याख्यान, कलह आदि प्रत्ययोंका भंगोंका अलग अलग विचार ३५६ विचार २८५ इसी प्रकार शेष सात कोके जाननेकी इसी प्रकार शेष सात कर्मा के प्रत्ययोंको सूचना ३६२ जाननेकी सूचना २८७ ऋजसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीय ऋजसूत्रनयसे ज्ञानावरणीयके प्रत्यय २८८ वेदना एकमात्र उदीर्ण है इसका इसी प्रकार शेष सात कर्मों के प्रत्ययोंको विचार जाननेकी सूचना २६० इसी प्रकार शेष सात कर्मों के जाननेकी शब्दनयकी अपेक्षा ज्ञानावरणके प्रत्ययोंका सूचना विचार २६० शब्दनयकी अपेक्षा अवक्तव्य है इसका इसी प्रकार शेष सात कर्मों के प्रत्ययोंको विचार ३६३ जाननेकी सूचना २६३ ११ वेदनागतिविधान ३६४-३६६ है वेदनास्वामित्वविधान २६४-३०१ वेदनागतिविधानकी प्रतिज्ञा व सार्थकता ३६४ वेदनास्वामित्वविधानकी प्रतिज्ञा व नैगम, संग्रह और व्यवहारनयकी अपेक्षा उसकी सार्थकता २६४ ज्ञानावरणीयवेदना अवस्थित और नैगम और संग्रहनयकी अपेक्षा ज्ञाना स्थितास्थितरूप है इसका विचार ३६५ वरणका स्वामी २६५ इसी प्रकार दर्शनावरण, मोहनीय और इसी प्रकार शेष सात कर्मोका स्वामी २६६ अन्तरायके जाननेकी सूचना ३६७ संग्रहनयकी अपेक्षा ज्ञानावरणका स्वामी २६६ वेदनीयवेदना स्थित, अस्थित और इसी प्रकार शेष सात काका स्वामी ३०० , स्थितास्थित है इसकी सिद्धि .. ३६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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