SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ७, १७४. ] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं [ ७७° सव्वमंदाणुभागं तिरिक्खाउगं । मणुसाउश्रमणंतगुणं । णिरयाउमणंतगुणं । [ देवाउअमणंतगुणं ] । सव्वमंदाणुभागा तिरिक्खगई। णिरयगई अनंतगुणा । मणुसगई अनंतगुणा । देव अनंतगुणा । सव्वमंदाणुभागा चउरिंदियजादी । तीइंदियजादी अनंतगुणा । बीइंदियजादी अनंतगुणा । एइंदियजादी अनंतगुणा । पंचिंदियजादी अनंतगुणा | सव्वमंदाणुभागं ओरालियसरीरं । वेउब्वियसरीरमणंतगुणं । तेजइयसरीरमणंतगुणं । कम्मइयसरीरमणंतगुणं । आहारसरीरमणंतगुणं । सव्वमंदाणुभागं णग्गोधसंठाणं । सादियसंठाणमणंतगुणं । खुज्जसंठाण मणंतगुणं । वामणसंठाणमणंतगुणं । हुंगगसंठाणमणंतगुणं । समचउरससंठाणमणंतगुणं । सव्वमंदाणुभागमोरा लिय सरीरअंगोवंगं । वेउव्वियसरीर अंगोवंगमणंतगुणं । आहारसरीरअंगोवंगमणंतगुणं । संघडणाणं संठाणभंगो । सव्वमंदाणुभागमध्पसत्थवण्णाइचउकं । पसत्थचउक्कमतगुणं । जहा गई तहा आणुपृथ्वी । सव्वमंदाणुभागं उवघादं । परघा दमणंतगुणं । तिर्यगाय सर्वमन्द अनुभागसे सहित है। उससे मनुष्यायु अनन्तगुणी है। उससे नारकायु अनन्तगुणी है । [ उससे देवायु अनन्तगुणी है तिर्यग्गति सर्वमन्द अनुभागसे सहित है। उससे नरकगति अनन्तगुणी है । उससे मनुष्य - गति अनन्तगुणी है । उससे देवगति अनन्तगुणी है । चतुरिन्द्रिय जाति सर्वमन्द अनुभाग से सहित है। उससे त्रीन्द्रिय जाति अनन्तगुणी है । उससे द्वीन्द्रिय जाति अनन्तगुणी है। उससे एकेन्द्रिय जाति अनन्तगुणी है। उससे पचेन्द्रिय जाति अनन्तगुणी है । औदारिक शरीर सर्वमन्द अनुभाग से सहित है। उससे वैक्रियिक शरीर अनन्तगुणा है । उससे तैजस शरीर अनन्तगुणा है। उससे कार्मण शरीर अनन्तगुणा है। उससे आहारक शरीर अनन्तगुणा है । न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान सर्वमन्द अनुभाग से सहित है । उससे स्वाति संस्थान अनन्तगुणा है। उससे कुब्जक संस्थान अनन्तगुणा है। उससे वामन संस्थान अनन्तगुणा है । उससे हुंडक संस्थान अनन्तगुणा है । उससे समचतुरस्र संस्थान अनन्तगुणा है । औदारिक शरीर अंगोपांग सर्वमन्द अनुभाग से सहित है। उससे वैक्रियिकशरीरांगोपांग अनन्तगुणा है। उससे आहारकशरीरांगोपांग अनन्तगुणा है । संहननोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा संस्थानोंके समान है । अप्रशस्त वर्णचतुष्क सर्वमन्द अनुभागसे सहित है। उससे प्रशस्त वर्णचतुष्क अनन्तगुणा । जिस प्रकार गतिके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार आनुपूर्वीके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करनी चाहिये । उपघात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy