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________________ ७६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ७, १७४. णाणावरणीयं । ओहिणाणावरणीयमणंतगुणं । सुदणाणावरणीयमणंतगुणं । आभिणियोहियणाणावरणीयमणंतगुणं । केवलणाणावरणीयमणंतगुणं ।। सव्वमंदाणुभागमोहिदसणावरणीयं । अचक्खुदंसणावरणीयमणंतगुणं । चक्खुदंसणावरणीयमणंतगुणं । केवलदंसणावरणीयमणंतगुणं । पचला अणंतगुणा । णिद्दा अणंतगुणा । णिद्दाणिद्दा अणंतगुणा । पयलापयला अणंतगुणा । थीणगिद्धी अणंतगुणा । सवमंदाणुभागमसादावेदणीयं । सादावेदणीयमणंतगुणं । सव्वमंदाणुभागं लोभसंजलणं । मायासंजलणमणंतगुणं । माणसंजलणमणंतगणं । कोधसंजलणमणंतगणं । पुरिसवेदो अणंतगुणो। हस्समणंतगुणं । रदी अणंतगुणा । दुगुंछा अणंतगुणा। भयमणंतगुणं । सोगो अणंतगुणो । अरदी अणंतगुणा। इत्थिवेदो अणंतगुणो । णवंसयवेदो अणंतगुणो। पच्चक्खाणमाणो अणंतगुणो। कोधो विसेसाहिओ। माया विसेसाहिया । लोभो विसेसाहिओ। अपञ्चक्खाणमाणो अणंतगुणो। कोधो विसेसाहिओ। माया विसेसाहिया । लोभो विसेसाहिओ। अणंताणुबंधिमाणो अणंतगुणो। कोधो विसेसाहिओ। माया विसेसाहिया । लोभो विसेसाहिओ। मिच्छत्तमणंतगुणं । सर्वमन्द अनुभागसे युक्त है । उससे अवधिज्ञानावरणीय अनन्तगुणा है। उससे श्रुतज्ञानावरणीय अनन्तगुणा है। उससे आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय अनन्तगुणा है। उससे केवलज्ञानावरणीय अनन्तगुणा है। ____ अवधिदर्शनावरणीय सर्वमन्द अनुभागसे सहित है । उससे अचक्षुदर्शनावरणीय अनन्तगणा है। उससे चक्षुदर्शनावरणीय अनन्तगुणा है। उससे केवल दर्शनावरणीय अनन्तगुणा है। उससे प्रचला अनन्तगुणी है। उससे निद्रा अनन्तगुणी है। उससे निद्रानिद्रा अनन्तगुणी है। उससे प्रचलाप्रचला अनन्तगुणी है। उससे त्यानगृद्धि अनन्तगुणी है। आसातावेदनीय सर्वमन्द अनुभागसे सहित है। उससे सातावेदनीय अनन्तगुणा है। . संज्वलन लोभ सर्वमन्द अनुभागसे सहित है । उससे संज्वलन माया अनन्तगुणी है। उससे संज्वलन मान अनन्तगुणा है। उससे संज्वलन क्रोध अनन्तगुणा है उससे पुरुषवेद अनन्तगुणा है । उससे हास्य अनन्तगुणा है । उससे रति अनन्तगुणी है । उससे जुगुप्सा अनन्तगुणी है। उससे भय अनन्तगुणा है। उससे शोक अनन्तगुणा है । उससे अरति अनन्तगुणी है । उससे स्त्रीवेद अनन्तगुणा है। उससे नपुंसकवेद अनन्तगुणा है । उससे प्रत्याख्यानावरण मान अनन्तगुणा है। उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोध विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण माया विशेष अधिक है । उससे प्रत्याख्यानावरण लोभ विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण मान अनन्ताणा है। उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण माया विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभ विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी मान अनन्तगणा है। उससे अनन्तानुबन्धी क्रोध विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी माया विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी लोभ विशेष अधिक है। उससे मिथ्यात्व अनन्तगुणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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