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________________ ७४ ] ariडागमे वेयणाखंड असण्णिप चिंदियतिरिक्खगइ संकिलेसादो अर्णतगुणसंकिलेसेण बद्धत्तादो । मणसगदी अनंतगुणा ॥ १६५ ॥ जद व एदिस्से एइंदिएस जहण्णबंधो जादो तो वि एसा णिरयगर्दि पेक्खिदूण तगुणा, सुहपयडित्तादो । [ ४, २, ७, १६५. देवगदी अनंतगुणा ॥ १६६ ॥ जदि वि एदिस्से जहण्णबंधो असण्णिपंचिदिएस परियत्तमाणमज्झिम परिणामेसु जादो तो वि मणुसगदिं पेक्खिदूण देवगदी अनंतगुणा, एइंदियपरियत्तमाणमज्झिमपरिणामादो असणिपंचिंदियपरियत्तमाणमज्झिमपरिणामाणमणंतगुणत्तदंसणादो । णीचागोदमणंतगुणं ॥ १६७ ॥ जदि वि दस्स सत्तमपुढवीणेरइएस सव्ववियुद्धपरिणामेसु जहणणं जाएं तो वि देवगदीदो णीचागोदमणंतगुणं, साभावियादो | अजसकित्ती अनंतगुणा ॥ १६८ ॥ पत्तसंजदेण सव्वविसुद्वेण पबद्धत्तादो | असादावेदणीयमणंतगुणं ॥ १६६ ॥ एदस्स जहण्णबंधो जदित्रि पमत्तसंजदम्मि चैव जादो तो वि तत्तो एदस्स क्योंकि वह असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच गतिके संक्लेशकी अपेक्षा अनन्तगुणे संक्लेशके द्वारा बांधी गई है। उससे मनुष्यगति अनन्तगुणी है ।। १६५ ।। यद्यपि इसका एकेन्द्रियों में जघन्य बन्ध होता है तो भी यह नरकगतिकी अपेक्षा अनन्तगुणी है, क्योंकि, वह शुभ प्रकृति है । उससे देवगति अनन्तगुणी है ॥ १६६ ॥ यद्यपि इसका जघन्य बन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामोंसे युक्त असंज्ञी पंचेन्द्रियों के होता है तो भी मनुष्यगतिकी अपेक्षा देवगति अनन्तगुणी है, क्योंकि, एकेन्द्रिय के परिवर्तमान मध्यम परिणामों की अपेक्षा असंज्ञी पंचेन्द्रिय के परिवर्तमान मध्यम परिणाम अनन्तगुणे देखे जाते हैं । उससे नीच गोत्र अनन्तगुणा है ।। १६७ ।। यद्यपि सर्वविशुद्ध परिणामवाले सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें इसका जघन्य बन्ध होता है, तो भी देवगतिकी अपेक्षा नीचगोत्र अनन्तगुणा है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । उससे अयशःकीर्ति अनन्तगुणी है ।। १६८ ॥ क्योंकि वह, सर्वविशुद्ध प्रमत्तसंयत जीवके द्वारा बांधी गई है । उससे असातावेदनीय अनन्तगुणी है ॥ १६९ ॥ यद्यपि इसका जघन्य बन्ध प्रमत्तसंयत के ही होता है, तो भी उससे इसका अनुभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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