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७४] छक्वंडागमे वेयणाखडं
[ १, २, ५, ९९. जोमणविक्खंभपउमग्मि । पंचेंदियउक्कस्सोगाहणा संखेज्जाणि जोयणसहस्साणि । सा कत्थ ? पंचजोयणसदुस्सेह-तदद्धविक्खंभ-जोयणसहस्सायाममच्छम्मि' । एदेसिमपज्जत्ताणं तप्पडिभागो होदि ।)
वाले पद्मके होती है। पंचेन्द्रियकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात हजार योजन है। वह कहां होती है ? वह पांच सौ योजन प्रमाण उत्सेध, इससे आधे विस्तार और एक हजार योजन आयामसे युक्त मत्स्यके होती है। इनके अपर्याप्तोंकी अवगाहनायें उक्त प्रमाणके प्रतिभाग मात्र होती हैं।
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, साहियसहस्समेकं वारं कोसूणमेकमेक्क च। जोयणसहस्सदीई पम्मे वियले महामन्छे ॥ गो. जी. ९५.
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