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४, २, ५, ९९.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे अप्पाबहुगं
[७१ ओगाहणप्पाबहुअदंडओ जीवसमास्राणं ण परविदो, अप्पाबहुअस्स असंबद्धप्पसंगादो। किंतु अट्ठण्णं पि कम्माणं जीवसमासेहिंतो अभेदेण लद्धजीवसमासववएसाणमोगाहणप्पाबहुअदंडओ एसो परविदो नि । किमट्ठमेसा अप्पाबहुगपरूवणा कदा ? समुग्घादेण विणा णाणावरणादीणमट्टणं पि कम्माणं सत्थाणोगाहणाणं जीवसमासभेदेण भिण्णाणं माहप्पपरूवणटुं कदा, णाणावरणादीणमजहण्ण-अणुक्कस्ससत्थाणखेत्तट्ठाणपरूवणटुं वा । एवमप्पाबहुगं सगतो. क्खित्तगुणगारहियारं समत्तं । एवं वेयणखेत्तविहाणे त्ति समत्तमणि योगदारं ।
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एदाओ सोलस उवरिमाओ ओगाहणाओ तिसमयआहारय-तिसमयतब्भवत्यलाद्धिअपज्जत्तयाणं जहण्णाओ घेतव्वाओ। आदिप्पहुडि सत्तारस ओगाहणाओ पदेसुत्तरकमेण अल्पबहुत्चदण्डक जीवसमासोंका नहीं कहा गया है, क्योंकि, वैसा करनेसे उक्त अल्पबहुत्वके असंगत होने का प्रसंग आता है। किन्तु यह जीवसमासोंसे आभन्न होनेके कारण जीवसमास संज्ञाको प्राप्त हुए आठों कर्मोंकी ही अवगाहनाका अल्पबहुत्व. दण्डक कहा गया है।
शंका- यह अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा किसलिये की गई है ?
समाधान- जीवसमासके भेदसे भेदको प्राप्त हुए ज्ञानावरणादिक आठों कर्मोंकी सदघात रहित स्वस्थान अवगाहनाओंके माहात्म्यको बतलानेके लिये उक्त प्ररूपणा की गई है । अथवा, शानावरणादिक कर्मों के अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्वस्थान क्षेत्रस्थानोंकी प्ररूपणा करनेके लिये उपयुक्त प्ररूपणा की गई है। इस प्रकार अपने भीतर गुणकार अधिकारको रखनेवाला अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
इस प्रकार वेदनाक्षेत्रविधान यह अनुयोगद्धार समाप्त हुआ।
ये उपरिम सोलह अवगाहनायें त्रिसमयवर्ती आहारक और त्रिसमयवर्ती तद्भवस्थ लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंकी जघन्य ग्रहण करना चाहिये। आदिसे लेकर सत्तरह ....................
ताप्रती 'घेतवाओ० ' इति पाठः। अवरमपुण्णं पढम सोलं पुण पढम-बिदिय-तदियोली । पुण्णिदर-पुण्णियाणं जहण्णमुक्कस्समुक्करसं ॥ गो. जी. ९९.
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