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________________ ४, २, ५, ३९. ] यणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे अप्पाबहुगं [ ५७ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एत्थ वि लद्धिअपज्जत्तयस्स गहणं कायव्वं । सुहुम पुढविकाइयलद्धिअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३५ ॥ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागेो । बादरवाउक्काइय अपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३६ ॥ एत्थ गुणगारे | पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । बादरते उक्काइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३७ ॥ गुणगारो पलिदोवस्त असंखेज्जदिभागो । वादरआउक्काइयअपज्जत्तयस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३८ ॥ एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । बादरपुढविकाइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३९ ॥ गुणकार क्या है ? गुणदार जावजीका असंख्यातवां भाग है। यहां भी लब्ध्यपर्याप्ता ग्रहण करना चाहिये। सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है ॥ ३५ ॥ गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । उससे बादर वायुकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ३६॥ यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उससे बादर तेजकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥३७॥ गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उससे बादर जलकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ३८ ॥ यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उससे बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ३९ ॥ छ. ११-८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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