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१, २, ५, २९.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे अप्पाबहुगे
जहण्णुक्कस्सपदेण अट्टण्णं पि कम्माणं वेदणाओ खेत्तदो जहणियाओ तुल्लाओ थोवाओ ॥ २७॥
सुगममेदं ।
णाणावरणीय-दसंणाणावरणीय-मोहणीय - अंतराइयवेयणाओ खेत्तदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ असंखज्जगुणाओ॥२८॥
एत्थ गुणगारो जगसेडीए असंखेज्जदिभागो। कुदो ? अट्ठण्णं कम्माणं जहण्णक्खेत्तेण अंगुलस्स असंखेज्जदिमागेण घादिकम्मुक्कस्सखेत्ते भागे हिदे' वि अंगुलस्स असंखेज्जदिमागेण जगसेडीए खंडिदाए तत्थ एगखंडुवलंभादो ।
वेयणीय-आउअ-णामा-गोदवेयणाओ खेत्तदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ ॥ २९ ॥
__एत्थ गुणगारो सुगमो, पुव्वं परविदत्तादो। एदमप्पाबहुगसुत्तं सव्वजीवसमासाओ अस्सिदूण ण परविदं ति कट्ट संपहि सव्वंजीवसमासाओ अस्सिदूण णाणावरणादिकम्माणं जहण्णुक्कस्सखेतपरूवणट्ठमप्पाबहुगदंडयं भण्णदि
जघन्योत्कृष्ट पदसे आठों ही कर्मोकी क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य वेदनायें तुल्य व स्तोक हैं ॥२७॥
यह सूत्र सुगम है।
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मकी वेदनायें क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट चारों ही तुल्य व पूर्वोक्त वेदनाओंसे असंख्यागुणी हैं ॥ २८॥
___ यहां गुणकार जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, आठो काँका जो जघन्य क्षेत्र अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है उसका घातिक के उत्कृष्ट क्षेत्रमें भाग देनेपर भी अंगुलके असंख्यातवें भागसे जगणिको खण्डित करनेपर उसमें से एक खण्ड पाया जाता है।
__ वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्मकी वेदनायें क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट चारों ही तुल्य व पूर्वोक्त वेदनाओंसे असंख्यातगुणी हैं ॥ २९ ॥
यहां गुणकार सुगम है, क्योंकि, उसकी पहिले प्ररूपणा की जा चुकी है। यह अल्पबहुत्वसूत्र चूंकि सब जीवसमासोंका आश्रय करके नहीं कहा गया है, अत एव अब सब जीवसमासोंका आश्रय करके शानावरणीय आदि कर्मोके जघन्य घ उत्कृष्ट क्षेत्रकी प्ररूपणा करने के लिये अल्पबहुत्वदण्डक कहा जाता है।
१ प्रतिषु हिदेसु' इति पाठः। २ प्रतिषु · सव्वा' इति पाठः ।
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