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________________ ४, २, ५, २१.] वेषणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्त [ ४९ खंडिदेगखंडमेत्तं वड्ढावेदव्वा जाव णिगोदपदिद्विदणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सियाए ओगाहणाए सरिसी जादा त्ति । तदो पदेसुत्तरादिकमेण आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडमेत्तं वड्ढावेदव्वा जाव णिगोदपदिहिदपज्जत्तयस्स उक्कस्सियाए ओगाहणाए सरिसी जादा त्ति । तदो पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तयस्स जहणियाए ओगाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। पुणो इमा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव बीइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणियाए ओगाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। संपहि उस्सेहघणंगुलस्स भागहारो संखेज्जरूवमेत्तो जादो । उवरि एसा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण तीहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वा जाव तेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणाए सरिसी जादा त्ति । एत्थ गुणगारो संखज्जा समया । कुदो ? बादरादो बादरस्स ओगाहणगुणगारो संखेज्जा समया त्ति सुत्तवयणादो । पुणो इमा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण तीहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वा जाव चरिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणियाए ओगाहणाए सरिसी जादा त्ति । पुणो इमा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण तीहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वा जाव पंचिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणियाए ओगाहणाए सरिसी जादा त्ति । पुणो इमा जब तक कि वह निगोदप्रतिष्टित निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश नहीं हो जाती है। फिर एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करने पर उसमें एक खण्ड मात्रसे बढ़ाना चाहिये जब तक कि वह निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश नहीं हो जाती है । तत्पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा उसके बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये। यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। फिर इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा द्वीन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। अब उत्सेधघनांगुलका भागहार संख्यात रूपों प्रमाण हो जाता है। इसके आगे इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे तीन वृद्धियों द्वारा त्रीन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । यहां गुणकार संख्यात समय है, क्योंकि, बादरसे बादरका अवगाहनागुणकार संख्यात समय है, ऐसा सूत्रमें निर्देश है। फिर इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे तीन वृद्धियों द्वारा चतुरिन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । फिर इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे तीन वृद्धियों द्वारा पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । फिर इस अवगाहनाको छ, ११-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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