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छक्खडागमे वेयणाखंड
[ ४, ३, ५, २१.
णाए सरिसी जादा ति । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कुदा ? सुहुमादो बादरस्स ओगाहणगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो त्ति सुत्तवयणादो' । तदो इमा ओगाहणां पदेसुत्तरादिकमेण असंखेज्जभागवडीए अप्पिद गाहणमावलियाए असंखेज्जदिभागण खंडिदेगखंडमेत्तं वड्ढावेदव्वा जाव बादरवाउक्काइयणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणाए सरिसी जादा ति । तदो पदेसुत्तरादिकमेण इमा आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडमेत्तं वढावेदव्वा जाव बादरवाउक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सो गाहणाए सरिसा जादा ति । तदो इमा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण चदुहि वड्ढीहि वड्ड वेदव्वा जाव बादरतेडक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णियाए ओगाहणाए सरिसी जादा ति । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कुदो ? बादरादो बादरस्स ओगाहणगुणगारो पलिदोवमरस असंखेज्जदिभागोति सुत्तवयणादो । तदो पदेसुत्तरादिकमेण इमा ओगाहणा असंखेज्जभागवड्डीए आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडमेत्तं वड्डावेदव्वं जाव बादरतेउक्काइयणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सो गाहणाए सरिसी जादो त्ति । तदो एसा ओगाहणा पदेसुत्तरादिकमेण असंखेज्जभागवड्डीए आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेग
चाहिये । यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, सूक्ष्म से बादरका अवगाहनागुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, ऐसा सूत्रवाक्य है । पश्चात् इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे असंख्यातभागवृद्धि द्वारा विवक्षित अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण बढ़ाना चाहिये जब तक कि वह बादर वायुकायिक निर्वृत्त्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश नहीं हो जाती । तत्पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे इस अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागले खण्डित करनेपर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण बढ़ाना चाहिये जब तक कि वह वायुकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश नहीं हो जाती है । फिर इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे चार वृद्धियों द्वारा बादर तेजकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये | यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, बादरसे बादरका अवगाहनागुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, ऐसा सूत्रमें निर्दिष्ट है । पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे इस अवगाहनाको असंख्यात भागवृद्धि द्वारा आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण बढ़ाना चाहिये जब तक कि वह बादर तेजकायिक निर्वृत्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश नहीं हो जाती । पश्चात् इस अवगाहनाको एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे असंख्यात भागवृद्धि द्वारा आवलीके असंख्यातवें भागले खण्डित करनेपर उसमेंसे एक भाग प्रमाण बढ़ाना चाहिये जब तक कि
१ क्षेत्रविधान ९६. २ अ-काप्रत्योः 'ओगाहणाए ', ताप्रतौ ' ओगाहणा [ ए ]' इति पाठः ।
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