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________________ ३२) छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ५, १७. एदेसिं खेत्ताणं सामिजीवाणं परवणे कीरमाणे छअणिओगद्दाराणि हवंति । तत्थ परूवणाए वेयणीयसव्वक्खेत्तवियप्पेसु अस्थि जीवा । परूवणा गदा।। उक्कस्सए ठाणे जीवा केत्तिया ? संखेज्जा । एवं णेयव्वं जाव कवाडगदकेवलिजहण्णक्खेत्तत्रियप्पे त्ति । उवीर महामच्छउक्कस्सखत्तप्पटुडि तसपाओग्गक्खेत्तसु असंखेज्जा। वणप्फदिकाइयपाओग्गेसु अणंता। एवं पमाणपरूवणा गदा । सेडिपरूवणा ण सक्कदे णदु, पवाइज्जतुवदेसाभावादो। अवहारो उच्चदे- उक्कस्सट्ठाणजीवपमाणेण सव्वट्ठाणजीवा केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति ? अणंतेण कालेण । एवं णदव्वं जाव तसकाइय-पुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइयवाउकाइयपाओग्गट्ठाणे ति । सुहुम-बादरवणप्फदिकाइयपाओग्गट्ठाणजीवपमाणेण सव्वजीवा वेवचिरेण कालेण अवहिरिज्जति ? असंखेज्जेण । भागाभागो वुच्चदे -- उक्कस्सए ढाणे जीवा सव्वट्ठाणजीवाणं केवडिओ भागो ? अणतिमभागो । जहण्णए ट्टाणे सव्वट्ठाणजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो । अजहण्णुक्कस्सए ट्ठाणे जीवा सव्वट्ठाणजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखज्जा भागा। भागाभागपरूवणा गदा । इन क्षेत्रोंके स्वामी जीवोंकी प्ररूपणा करनेमें छह अनुयोगद्वार हैं। उनमें प्ररूपणा अनुयोगद्वारकी अपेक्षा वेदनीय कर्मके सब क्षेत्रविकल्पों में जीव हैं । प्ररूपणा समाप्त हुई। उत्कृष्ट स्थानमें जीव कितने हैं ? संख्यात है। इस प्रकार कपाटसमुदघातगत केवलीके जघन्य क्षेत्रविकल्प तक ले जाना चाहिये। आगे महामत्स्यके उत्कृष्ट क्षेत्रले लेकर त्रस योग्य क्षेत्रोंमें असंख्यात जीव हैं। वनस्पतिकायिक योग्य क्षेत्रों में अनन्त जीव हैं । इस प्रकार प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। श्रेणिप्ररूपणा बतलाना शक्य नहीं है, क्योंकि, उसके विषयमें प्रवाह स्वरूपसे प्राप्त हुए परम्परागत उपदेशका अभाव है। ____ अवहारकी प्ररूपणा करते हैं - उत्कृष्ट स्थानमें रहनेवाले जीवोंके प्रमाणसे सब जीव कितने कालस अपहृत होते हैं? वे उक्त प्रमाणसे अनन्त कालमें अपहृत होते हैं । इस प्रकार त्रसकायिक, पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक और वायुकायिक योग्य स्थानों तक ले जाना चाहिये । सूक्ष्म व वादर वनस्पतिकायिक योग्य स्थानों सम्बन्धी जीवोंके प्रमाणसे सब जीव कितने कालसे अपहृत होते हैं ? उक्त प्रमाणसे वे असंख्यात कालमें अपहृत होते हैं। भागाभागकी प्ररूपणा करते हैं - उत्कृष्ट स्थान में रहनेवाले जीव सव स्थानों सम्बन्धी जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? वे उनके अनन्त भाग प्रमाण हैं। जघन्य स्थानमें रहनेवाले जीव सब स्थानों सम्बन्धी जीवों के कितने भाग प्रमाण हैं ? वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। अजघन्योत्कृष्ट स्थानमें रहनेवाले जीव सव स्थानों सम्बन्धी जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? वे उनके असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। भागाभागप्ररूपणा समाप्त हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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