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________________ ३.) छक्खंडागमे वैयणाखंड (१, २, ५, १७. मावो परविदो । केवलिस्से ति णिद्देसेण छदुमत्थाणं पडिसेहो कदो। केवलिसमुग्धादेण समुहदस्से ति गिद्देसेण सत्थाणकेवलिपडिसेहो कदो । सव्वलोगं गदस्से ति णिद्देसेण दंडकवाड-पदरगदाणं पडिसेहो कदो। सव्वलोगपूरणे वट्टमाणस्स उक्कस्सिया वेयणीयवेयणा होदि ति उत्तं होदि । एत्थ उवसंहारो सुगमो।। तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा ॥ १७ ॥ एदम्हादो उक्कस्सखेत्तवेयणादो वदिरित्ता खेत्तवेयणा अणुक्कस्सा होदि । तत्थतणउक्कस्सियाए खेत्तवेयणाए पदरगदो केवली सामी, एदम्हादो अणुक्कस्सखेत्तेसु महल्लखेत्ताभावादो । एदं च उक्कस्सखेत्तादो विसेसहीण, वादवलयभंतरे जीवपदेसाणमभावादो। सव्वमहल्लोगाहणाए कवाडं गदो केवली तदणंतरअणुक्कस्सखेत्तट्ठाणसामी । णवरि पुविल्लअणुक्कस्सखेत्तादो बिदियमणुक्कस्सक्खेत्तमसंखेज्जगुणहीण, संखेज्जसूचीअंगुलबाहल्लजगपदरपमाणकवाडखेत्तं पेक्खिदूण मंथक्खेत्तस्स असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो। पदेसूणुक्कस्सविक्खंभोगाहणाए कवाडं गदो केवली तदियखेत्तसामी । णवीर बिदियमणुक्कस्सक्खेतं पेक्खिदूण तदियमणुक्कस्सक्खेत्तं विसेसहीणं हादि, पुबिल्लक्खेत्तादो जगपदरमेत्तखेत्तपरिहाणिदसणादो। दुपदेसूणुक्कस्सविक्खंभेण कवाडं गदो चउत्थखेत्तसामी। एदं पि प्रतिषेधका अभाव बतलाया गया है। केवली' पदका निर्देश करके छद्मस्थोंका प्रतिषेध किया गया है। केवलि समुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त ' इस निर्देशसे स्वस्थानकेवलीका प्रतिषेध किया है । 'सर्व लोकको प्राप्त ' इस निर्देशसे दण्ड, कपाट और प्रतर समुद्घातको प्राप्त हुए केवलियोंका प्रतिषेध किया है। सर्वलोकपूरण समुद्धातमें रहनेवाले केवलीके उत्कृष्ट वेदनीयवेदना होती है, यह उसका अभिप्राय है। यहां उपसंहार सुगम है। उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनासे भिन्न क्षेत्रवेदना अनुत्कृष्ट है ॥ १७ ॥ इस उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनासे भिन्न क्षेत्रवेदना अनुत्कृष्ट होती है । अनुत्कृष्ट क्षेत्रघेदनाविकल्पोंमें उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनाके स्वामी प्रतरसमुद्धातको प्राप्त केवली हैं, क्योंकि, अनुत्कृष्ट क्षेत्रोंमें इससे और कोई बड़ा क्षेत्र नहीं है । यह क्षेत्र उत्कृष्ट क्षेत्रकी अपेक्षा विशेष हीन है, क्योंकि, इस क्षेत्रमें जीवके प्रदेश वातवलयोंके भीतर नहीं रहते। सबसे बड़ी अवगाहना द्वारा कपाटसमुद्घातको प्राप्त केवली तदनन्तर अनुत्कृष्ट क्षेत्रस्थानके स्वामी हैं । विशेष इतना है कि पूर्वके अनुत्कृष्ट क्षेत्रसे द्वितीय अनुत्कृष्ट क्षेत्र असंख्यातगुणा हीन है, क्योंकि, संख्यात सूच्यंगुल बाहल्य रूप जगप्रतर प्रमाण कपाटक्षेत्रकी अपेक्षा मंथक्षेत्र असंख्यातगुणा पाया जाता है । एक प्रदेश कम उत्कृष्ट विष्कम्भ युक्त अवगाहनासे कपाटसमुद्घातको प्राप्त केवली तृतीय क्षेत्रके स्वामी है। विशेष इतना है कि द्वितीय अनुत्कृष्ट क्षेत्रकी अपेक्षा तृतीय अनुत्कृष्ट क्षेत्र विशेष हीन है, क्योंकि, इसमें पूर्वके क्षेत्रकी अपेक्षा एक जगप्रतर मात्र क्षेत्रकी हानि देखी जाती है। यो प्रदेश कम उत्कृष्ट विष्कम्भसे कपाटको प्राप्त केवली चतुर्थ अनुत्कृष्ट क्षेत्रके स्वामी , अ-काप्रत्योः ‘समुहस्से त्ति' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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