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________________ २५) छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ५, १३. ओसारिय अणुक्कस्सखेत्ताणं परूवणा कायव्वा । एवं णेदव्वं जाव वेयणसमुग्धादेण समुहदमहामच्छखेतं ति। ___ पुणो एदेण खेत्तेण कम्हि महामच्छे मारणतियखेतं सरिसमिदि उत्ते उच्चदे, तं जहा--जो महामच्छो वेयणसमुग्धादेण विणा मूलायामेण सह णवजोयणसहस्साणि मारणंतियं मेल्लिदि, तस्स खेत सरिसं होदि । पुणो पुविल्लं मोत्तूण इमं घेत्तूण खेत्तस्स सामित्तपरूवणं कायव्वं । तं जहा- मुहम्मि एगागासपदेसेण ऊणमहामच्छेण णवजोयणसहस्साणि मुक्कमारणंतिए मेलाविय अणतरहेटिमअणुवकस्समारणंतियखेत्तं होदि । एवमेगेगासपदेसं मुहम्मि ऊणं करिय णवजोयणसहस्साणि मारणंतियं मेल्लाविय संखेज्जपदरंगुलमेत्तखेत्ताणं सामित्तपरूवणं कायव्वं । एवं परिहाइदण ट्ठिदपच्छिमखेत्तण ओघुक्कस्सोगाहणाए पदेसूणणवजोयणसहस्साणि मुक्कमारणंतियमहामच्छखेत्तं सरिसं होदि ? एवं जाणिदूण पदेसूणादिकमेण सेसखेत्ताणं पि सामित्तपरूवणं कायव्वं जाव महामच्छस्सद्धाणुक्करसोगाहणे त्ति । पुणो पदेसूणुक्करसोगाहणमहामच्छो तदणंतरहेट्ठिमअणुक्कस्सखेत्तसामी । एवमेगेगं खेत्तपदेस णिरंतरं ऊणं करिय णेयवं जाव बादरवणप्फदिकाइयपत्तयमहामत्स्यको ही एकको आदि लेकर एक अधिक आकाशप्रदेशके क्रमसे आगे बढ़ाकर अनुत्कृष्ट क्षेत्रोंकी प्ररूपणा करना चाहिये। इस प्रकार वेदनासमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त महामत्स्यके क्षेत्र तक ले जाना चाहिये ।। शंका-इस क्षेत्रसे कौनसे महामत्स्यका क्षेत्र सदृश है ? समाधान - इस शंकाका उत्तर कहते हैं । वह इस प्रकार है-जो महामत्स्य वेदनासमुद्घातके विना मूल आयामके साथ नौ हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घातको करता है उसका क्षेत्र इस क्षेत्रके सदृश होता है। अब प्रवेके क्षेत्रको छोड़कर व इसे ग्रहण कर स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये। वह इस प्रकार है-मुखमें एक आकाशप्रदेशसे हीन होकर नौ हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घातको करनेवाले महामत्स्यका अनन्तर अधस्तन अनुत्कृष्ट मारणान्तिकक्षेत्र होता है। इस प्रकार एक एक आकाशप्रदेशको मुखमें कम करके नौ हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घातको कराकर संख्यात प्रतरांगुल मात्र क्षेत्रों के स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये। इस प्रकार हीन होकर स्थित अन्तिम क्षेत्रसे ओघोक्त उत्कृष्ट अवगाहनामें एक प्रदेश कम नौ हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घातको करनेवाले महामत्स्यका क्षेत्र सदृश होता है । इस प्रकार एक प्रदेश कम, दो प्रदेश कम इत्यादि क्रमसे महामत्स्यके अध्वानमें उत्कृष्ट अवगाहना तक शेष क्षेत्रों के भी स्वामित्वकी प्ररूपणा जानकर करना चाहिये। पुनः एक प्रदेश कम उत्कृष्ट अवगाहनावाला महामत्स्य उससे अनन्तर अधस्तन अनुत्कृष्ट क्षेत्रका स्वामी होता है। इस प्रकार एक एक क्षेत्रप्रदेशको निरन्तर कम करके बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीरकी उत्कृष्ट अवगाहना प्राप्त १ अप्रती ' -मेगेगाणसपदेस', तापतौ —-मेगेगागासपदेस-' इति पाठः। २ प्रतिषु “खेत्तस्स' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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