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छक्खंडागमे वेयणाखंडं . [४, २, ६, २१७. . असादस्स तिहाणियजवमज्झस्स हेढदो ट्ठाणाणि संखेजगुणाणि ॥ २१७॥
कुदो ? हेष्टिमसंकिलेसेहिंतो एदेसि संकिलेसाणमसुहत्तदंसणादो ।
उवरि संखेज्जगुणाणि ॥ २१८ ॥ कारणं सुगमं ।
असादस्स चउहाणियजवमज्झस्स हेढदो ट्ठाणाणि संखेज्जा गुणाणि ॥ २१९ ॥
कारणं सुगमं।
सादस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणों ॥२२० ॥
कुदो ? असादस्स चउहाणियजवमज्झस्स हेटिमट्ठिदिबंधट्ठाणाणि सागरोवमसदपुधत्तमेत्ताणि । सादस्स जहण्णओ हिदिबंधो पुण अंतोकोडाकोडिआबाधूणा । तेण असादस्स चउहाणियजवमज्झटिमटाणेहिंतो सादस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो जादो ।
जट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ।। २२१ ॥
असाता वेदनीयके त्रिस्थानिक यवमध्यके नीचेके स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २१७ ॥ . कारण यह कि नीचेके संक्लेश परिणामोंकी अपेक्षा ये संक्लेश परिणाम अशुभ देखे जाते हैं।
उसके ऊपरके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २१८ ॥ इसका कारण सुगम है।
असाता वेदनीयके चतुःस्थानिक यवमध्यके नीचेके स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २१९॥ इसका कारण सुगम है।
सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ २२० ॥
कारण कि असाता वेदनीयके चतुःस्थानिक यवमध्यके नीचेके स्थितिबन्धस्थान शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण हैं। परन्तु सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध आवाधासे हीन अन्तःकोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण है । इसीलिये असाताके चतुस्थानिक यवमध्यके नीचे के स्थानोंकी अपेक्षा साता वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हो जाता है ।
ज-स्थितिबन्ध उससे विशेष अधिक है ॥ २२१ ॥
१ तेभ्योऽपि तासामेव परावर्तमानाशुभप्रकृतीनां त्रिस्थानकरसयवमध्यादधः स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि १४ । क. प्र. (म. टी.) १,९९, । २ तेभ्योऽपि तासामेव परावर्तमानाशभप्रकृतीनां त्रिस्थानकरसयवमध्यस्योपरि स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि १५ । क. प्र. (म. टी.) १,९९. । ३ तेभ्योऽप्यशुभपरावर्तमानप्रकृवीनामेव चतु:स्थानकरसयवमध्यादधःस्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि १६ । क. प्र. (म. टी.) १,९९. ४ तेभ्योऽपि शुभाना परावर्तमानप्रकृतीनां जघन्यः स्थितिबन्धः संख्येयगुणः ८ । क. प्र. (म. टी.) १,९८.
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