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________________ ४, २, ६, २०३: ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे द्विदिबंधज्मवसाणपरूवणा [३३१ जहण्णहिदिजीवसमाणजीवहिदीदो उवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ (२) विरलिय पिंग करिय अण्णोण्णभत्यं कादूण किंचूणे कदे पलिदोवमस्स असंखेजदिमागमेत्तगुणगाररासिसमुप्पत्तीदो १६ । ५। एदेण चरिमहिदिजीवे गुणिदें जहण्णट्ठिदिजीवपमाणं होदि १६ । जवमज्झजीवा असंखेजगुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो । कुदो ? जवमज्झस्सुवरिमजहण्णहिदिसमाणजीवाणं च हेटिम (२)णाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्यरासिस्स गुणगारभूदस्स पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तत्तुवलंभादों ४ । एदेण जहण्णहिदिजीवे गुणिदे जवमज्झजीवा होंति ६४ । केत्तियासु हिदीसु जवममं? एक्किस्से चेव। जवमज्झप्पहुडि हेहिमजीवा असंखेजगुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो, किंचूणदिवगुणहाणीयो ति उत्तं होदि । ३९ । ८ । एदेण जवमज्झजीवे गुणिदे जवमझेण सह हेट्ठिमजीवपमाणं होदि ३१२। जवमज्झस्स उवरिमजीवा विसेसाहिया। बंधविसेसाहियकारणं उच्चदे । तं जहा-जवमज्झटिमआयामादों। तत्तो उवरिमदीहपमाणं संखेजगुणं । पुणो जवमज्झस्स हेट्ठा है, क्योंकि, उपरिम जघन्य स्थितिके जीवोंके समान जीवस्थितिसे ऊपरकी नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके दूना कर परस्पर गुणन करनेपर जो प्राप्त हो उसमें कुछ कम करनेपर पल्योपमके असंख्यात भाग प्रमाण गुणकार राशि उत्पन्न होती है---। इससे अन्तिम स्थितिके जीवोंको गुणित करनेपर जघन्य स्थितिके जीवोंका प्रमाण होता है-१६ । उनसे यवमध्यके जीव असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, यवमध्यसे ऊपरकी और जघन्य स्थितिके समान जीवोंके नीचेकी नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन करके द्विगुणित कर परस्पर गुणा करनेपर जो गुणकारभूत राशि प्राप्त होती है वह पल्योपमके असंण्यातवें भाग प्रमाण पायी जाती हैं-४। इससे जघन्य स्थितिके जीवोंको गुणित करनेपर यवमध्यके जीव होते है-६४। शंका-कितनी स्थितियों में यषमध्य होता है ? समाधान-एक ही स्थितिमें होता है। यवमध्यसे लेकर नीचेके जीव असंख्यात गुणे हैं । गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग अर्थात् कुछ कम डेढ गुणहानियां हैं, यह अभिप्राय हैहै। इससे यवमध्यजीवोंको गुणित करनेपर यवमध्यके साथ नीचे के जीवोंका प्रमाण होता है-३१२ । यवमध्यसे ऊपरके जीव विशेष अधिक हैं । उनके विशेष अधिक होनेका कारण बतलाते हैं। वह इस प्रकार है-यवमध्यके अधस्तन आयामकी अपेक्षा उससे ऊपरकी दीर्घताका प्रमाण संख्यातगुणा है। यवमध्यके नीचे जितना अध्यान है उतना १ अ-काप्रत्योः '-समासाण-', ताप्रतो ' समासाणं ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'बीवगुणिदे' इति पाठः। ३ ताप्रतो 'जहण्णहिदिसमएण बीवाणं' इति पाठः। ४ अ-आ-काप्रतिषु 'मेत्तुबळंभादो' इति पाठः। ५ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु १२ इति पाठः। ६ अप्रतो' जबमकडिमजीवेहि सरिस होदि आयामादो'इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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