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४, २, ५, ४. ]
वैयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे पदमीमांसा
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ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोम- गोविसिद्धा । एवमणादिया वेयणा बारसभंगा तेरसभंगा वा |१२|| एसो सत्तमसुत्तत्थो ।
धुवणाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया, सिया अणादिया, सिया अदुवा, सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोम - णोसिट्ठा । एवं धुवपदस्स बारस भंगा तेरस भंगा वा |१२|| एसो अट्टमसुत्तत्थो ।
अडवणाणावरणीयत्रेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया, सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोम गोविसिट्टा । एवमद्भुवपदस्स दस भंगा एक्कारस भंगा वा | १० || एसो वमत्तत्थो ।
ओजणाणावरणीयवेयणा
उक्कस्स - जण्णपदेसु णत्थि, कदजुम्मे ते सिमवदो । तदो सिया अणुक्कस्सा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया । सिया अणादिया । कुदो ? सामण्णविवक्खादो । सिया धुवा, सामण्णविवक्खादो चेव । सिया अन्दुवा, विसेसविवक्खाए । दव्वविहाणे अणादिय-धुवत्तं किण्ण परूविदं ? ण, तत्थ सामण्ण
कथंचित् नोम-नोविशिष्ट भी है । इस प्रकार अनादिवेदना के बारह (१२) भंग अथवा तेरह भंग होते हैं । यह सातवें सूत्रका अर्थ है ।
ध्रुवज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, कथंचित् सादि, कथंचित् अनादि, कथंचित् अध्रुव, कथंचित् ओज, कथंचित् युग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट भी है । इस प्रकार ध्रुव पदके बारह ( १२ ) अथवा तेरह भंग होते हैं । यह आठवें सूत्रका अर्थ है ।
अध्रुवज्ञानावरणीय वेदना कथंचित् उत्कृष्ट कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, कथंचित् सादि, कथंचित् ओज, कथंचित् युग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट भी है । इस प्रकार अध्रुव पदके दस (१०) अथवा ग्यारह भंग होते हैं । यह नौवें सूत्रका अर्थ है । ओजज्ञानावरणीयवेदना उत्कृष्ट और जघन्य पदोंमें नहीं होती, क्योंकि, उनका अवस्थान कृतयुग्म राशिमें है । इसलिये वह कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् अजघन्य व कथंचित् सादि है । वह कथंचित् अनादि भी है, क्योंकि, सामान्यकी विवक्षा है । कथंचित् वह ध्रुव भी है, क्योंकि, उसी सामान्यकी ही विवक्षा है । कथंचित् वह विशेषकी विवक्षासे अध्रुव भी है ।
शंका - द्रव्यविधान में अनादि और ध्रुव पदोंकी प्ररूपणा क्यों नहीं की गई है ?
छ. ११-२.
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