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________________ ३०२] छक्खंडागमे वेयणाखंडं - [४, २, ६, १६४. विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्तयस्सं णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो। तस्सेव अपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सण्णिपंचिंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ) मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं द्विदिबंधहाणाणि संखेज्जगुणाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधहाणाणि विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। मोहणीयस्स हिदिबंधहाणाणि संखेज्जगुणाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं ट्ठिदिबंधट्ठाणाणि संखेजगुणाणि । उवकस्सओ हिदिबंधो है। उसीके अपर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम-गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके नामगोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके चार कौंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम-गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके नामगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके नाम-गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चार कर्मों के स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयके स्थितिबन्धस्थान संख्यातेगुणे हैं। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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