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________________ ४, २, ६, १६१.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे अप्पाबहुअपरूवणा [३०१ चउरिंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स आउअस्स हिदिबंधहाणाणि विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चउरिंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णटिदिबंधो विसेसाहिओ। तैस्सेव अपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चउरिंदियपजत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपजत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णहिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । तस्सेव अपजत्तयस्स गामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके नाम-गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के आयुके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके वार कमौका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम गोत्रका जधन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा १ अ-आ-का-प्रतिष्वनुपलभ्यमानं वाक्यमिदं मप्रतितोऽत्र योजितम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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