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________________ २९८ ] छक्खडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ६, १६४. दुणं कम्माणं द्विदिबंधद्वाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि । तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा - गोदाणं द्विदिबंधट्टाणाणि संखेजगुणाणि । चदुणं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । चउरिंदियअपजत्तयस्स णामा - गोदाणं द्विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्टाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स द्विदिबंधाणाणि संखेजगुणाणि । तस्सेव पत्तयस्स णामा - गोदाणं द्विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । चदुण्णं कम्माणं द्विदिषंधद्वाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स द्विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । असण्णिपंचिंदियअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं द्विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधट्ठाणाणि संखेजगुणाणि । तस्सेव पत्तयस्स णामा-गोदाणं द्विदिबंधद्वाणाणि संखेज्जगुणाणि । चदुष्णं कम्माणं बंधाणाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स द्विदिबंधट्टाणाणि संखेज्जगुणाणि । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । सुहुमेइंदियअपत्तयस्स णामा-गोदाणं जहणओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियअपजत्तयस्से णामा-गोदाणं जहणओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । सुहुमेइं दियअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ दबंध विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा - गोदाणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियअपजत्तयस्स णामा - गोदाणमुक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । मोहनीयके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उसीके पर्याप्तक के नाम गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं। चार कर्मोंके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। मोहनीय के स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक के नाम गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं। चार कमौके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। मोहनीयके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उसीके पर्याप्तकके नाम गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । चार कर्मोंके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । मोहनीय स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । चार कर्मोंके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । मोहनीयके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । उसीके पर्याप्तक के नाम गोत्रके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । चार कर्मोंके स्थितिबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। मोहनीयके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के नाम गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ' बादरएइंदियपज्ज० ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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